________________
११८
१३८ अह केश कर्तनपर यहाँ पंचायतें होतीं कहीं,
सुख शान्तिके दिनमें अहो दुख बीज वेषोत्तीकहीं। पंचायतें तो आज कलकी मान्यताको खो चुकीं, अपने हृदयसे सर्वथा सौजन्यताको धो चुकीं।
बहिष्कार। इन पंचराजो के निकट अपमान ही हथियार है,
लेकिन समयके सामने वह शस्त्र भी बेकार है । पापी जिन्हें कहते अभी धर्मिष्ठ वे कहलायंगे, उन पापियों की धारमें सवही सहज वह जायंगे ।
१४०
अपराध बिन भी बन्धु कितने जाति च्युत होते यहाँ,
अपमानसे होके दुखित वे पाप रत होते यहां । बिछुड़े हुये निज बन्धुओं को फिर मिला सकते नहीं, उपदेश धारा भूल करके हम पिला सकते नहीं।
प्रति वर्ष कितने ही मनुज रोते हमारे त्राससे, होते विधर्मी प्रेमसे जाके हमारे पाससे ।
१ वाल बनवानेपर।