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देखो ! परस्परकी कलहमें आज उनका धर्म है,
अब उठ गया उनके हृदयसे धर्मका सब मर्म है। निष्पक्ष होके वस्तु निर्णयकी उन्हें सौगन्ध है, कहते प्रथमसे रूढ़ियों का धर्मसे सम्बन्ध है।
२२७ शुभ ज्ञानके बदले हमें अज्ञान धारा दे रहे,
उद्देश बिन ये लोग यों ही धर्म नौका खे रहे । कचरा हटाने में तनिक अब ये समझते पाप हैं, आश्चर्य कारी पण्डितों के आज कार्य-कलाप हैं।
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हठ भूतके आधीन होकर सत्यकी चोरी करें,
हा! सत्यमें भी व्यर्थकी ये लोग मुंह जोरी करें। निन्दा तथा बकवादसे कुछ काम चलता है नहीं, हे पण्डितो! तुम सत्य बोलो सत्यकी सारी मही।
बाबू लोग। इन बावुओंने भी यहां कैसी मचाई क्रान्ति है, जिससे समाजोंमें विपुल सर्वत्र क्रूर अशान्ति है। सबको मिटा करके अहो । ये एक करना चाहते, थे निन्ध बातें भी बहुत सी हाय आज सराहते।