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झट भेजिये खर्चा नहीं तो नाथ इस क्षण आइये,
दो चार बढ़िया साड़ियां भी साथ लेते आइये । तब दुःखप्रद यह पत्र पढ़ दो चार आंसूपड़ गये, हा ! दीनताकी वेदनासे प्राण सहसा उड़ गये।
हा! एक तो सर्वत्र ही इस दीनताका राज है,
तैयार खेती पर यहाँ पड़ती भयंकर गाज है। आता नदीका पूर भी हमको सतानेके लिये, रोते हुएको और भी अतिशय रुलानेके लिये।
धन-जन तथा पश्चादि उसमें सर्वदाको बह गये,
हम हाय, विछुड़े वनहरिण समही अकेले रह गये। मिलता कठिन सारा परिश्रम आज सहसा धूलमें,
किस पापके परिणामसे अब दैव है प्रतिकूलमें । होती कहीं अतिवृष्टिहै जिससे भयंकर त्रास हो
धन नाश हो जन नाश हो, हा! सर्वसत्यानाश हो। हा। तैरने लगते मनुज-शव नीरमें फुटवालसे, जो थे बदन सुषमा भरे वे दीखते विकरालसे ।
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