________________
हम तो स्वयं ही मूर्ख हैं पर दूसरा हमसे बने, जिसमें सना गृह पति यहां परिवार भी उसमें सने। कुछ भी नहीं है सन्निकट पर इन्द्रियोंके दास हैं, सुख धूलमें सब मिल गये दूने हमारे त्रास हैं।
परिवर्तन । यह देख परिवर्तन विकट होता बड़ा आश्चर्य है,
हे वीर सन्तानो ! कहाँ जाके छुपा ऐश्वर्य है। है है कहां सम्प्रति तुम्हारी दक्षता निष्पक्षता, व्यापारमें कोई हमारी कर सका समकक्षता ?
हे देव ! हम ऐसे गिरे किस पापका परिणाम है ?
सुखकासदन किस पापवश हा होरहा दुख धाम है स्वर्गीय सुख जाता रहा नारकीय है अति यंत्रणा, जिनके न वैभवका पता था वे चबाते हैं चना ।
जिनकी निकलती थी सवारी, आज नङ्ग पांव हैं,
जोथे सशक्त अरोग अतिशय,आज तनमें घाव हैं। थे जिस सरोवरमें कमल अब शेष उसमें पङ्क है, ' जिसके निकट था इन्द्र-वैभव हाय अब वह रङ्क है।