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संसारमें ही देव दुर्लभ सौख्य उनको प्राप्त थे, इस लोकके उत्कृष्ट सुखसे चित्त उनके व्याप्त थे।
प्रभाव। अवलोक करके शांति मुद्रा वैर तजते थे सभी,
लड़ता नथा उनके निकट अहिसे नकुल लवलेश भी मार्जार करता था किलोलें हर्षसे ही श्वानसे,
पशु देखते थे सौम्य आनन सर्वदा अति ध्यानसे। बनके हरिण मनमें अहो! वे स्थाणुकीही भ्रांतिसे,
तनकी खुजाते खाज थे उनसे रगड़कर शांतिसे। सिंहनी-शावक अहा ! गौ-क्षीर पीता था यहां,
गौ-वत्स निर्भय सिंहनीका क्षीर पीता था यहां। केकी पगोंके पास ही निःशंक विषधर डोलते,
वे भूल करके भी कभी उनसे न कुछ थे बोलते। आश्चर्य जग भरको हुआ उनकी अलौकिक शक्तिसे, करते रहे गुणगान सविनय विश्वजन बहु भक्तिसे
आदर्श पुरुष। आदर्श हों दो चार तो उनको गिनायें हम यहाँ, आकाशके तारे अहो ! किस विधि गिनायें हमयहां आश्चर्यकारी लोकको उत्कृष्ट उनके कृत्य थे,