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मिथ्या गुरु इनको कहा पंक्ति बता सद् ग्रन्थकी। उस काल पक्षापक्षमें दो भेद सहसा पड़ गये , यों एक हीरेके यहां दो खण्ड योंही जड़ गये ।
और भी पतन। योतो प्रथमसे ही अधिक हम हो रहे कमज़ोर थे,
तिसपर विधर्मी कर रहे अन्याय हमपर घोर थे। निःशेष करनेमें इसे किस धर्मने की है कमी, उस काल भारतमें विकट कैसी कटाकट थी जमी?
८००० जैन साधुनोंका बलिदान । हा ! धर्मके ही नामपर अन्याय नित होते रहे,
धर्मिष्ठ मानव धर्म हित निज प्राणको खोते रहे। देखो हमारे साधुओंको पेल घानीमें दिया,
धर्मान्धता वश पापियों ने क्या नहीं उनका किया? हंसते हुये सानन्द वे मुनि तीक्ष्ण शूलीपर चढ़े,
हा! चीथते थे श्वान तनको पर रहे अविचल खड़े। है देह क्षण भंगुर नियम है,धर्म फिर मिलता नहीं,
जो धर्मपर रहता अटल मरकर सदा जीता वही। अब भी भयङ्कर चित्र ये मीनाक्षि मन्दिरमें वने, १ मदुराका मीनाक्षी मंदिर।