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चम्पू सरीखे काव्य तो दो चार भी होंगे नहीं, शृङ्गार रस भरपूर जो थोड़े बहुत मिलते कहीं । पांडित्य दर्शक देखलो वह काव्य द्विःसन्धान हैं, जिसको सकल साहित्य में नित प्राप्त उच्च स्थान है । प्रत्येक छन्दोंके अहो ! चौवीस होते अर्थ हैं, ऐसे गहन सद् ग्रन्थ हममें ही सदैव समर्थ हैं । चित्र विद्या ।
हम चित्र विद्यामें परम नैपुण्य रखते थे यहां, निज लेखनीके ही चलाते चित्र लखते थे यहां । अंगुष्ठको अवलोक कर सर्वाङ्ग अङ्कित कर सके,
अपनी कालसे विश्व भरका मन विमोहित कर सके। देखो यशोधर ग्रन्थमें मन मुग्धकारो चित्र हैं. अङ्कत हमारे ही किये मिलते यहाँ पर चित्र हैं । अवलोकके आँखें उन्हें चाहें पुनः अवलोकना,
उस चित्रकारीकी न कोई कर सकेगा कल्पना । रचतेन नारद रुक्मिणीका चित्र यदि जगमें कहीं,
संग्राम में शिशुपालका संहार भी होता नहीं । बिरही प्रियाका चित्रका लखकर धैर्य नित धरते रहे, हम चित्र अनुपम विश्वमें अङ्कित सदा करते रहे ।