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साक्षात् ईश्वर भी हमें सुत पौत्र दे सकता नहीं, निष्काम है वह तो सदा धन धान्य ले सकता नहीं । उनके गुणों के रागसे परिणाम होते शुद्ध हैं, फिर पाप होते दूर तब सब कार्य होते सिद्ध हैं । यों निष्कपटकर भक्ति जो करते जगत सुख चाहना, भट प्रतिफलित होती प्रभूकी भक्तिसे वह कामना । प्रभु मूर्ति पूजाका यहां आदेश ऋषियों ने दिया,
सविनय सकल संसारने स्वीकार उसको था किया। ज्यों चित्र होता हमें है ज्ञान उसकी मूर्तिका, भगवान- प्रतिमा से हमें हो ज्ञान उनकी मूर्तिका ।
वक्ता ।
वक्ता जितेन्द्रिय थे यहाँ निर्दोष थी जिनकी गिरा, श्रद्धान था प्रभु मार्गका उपदेश था अमृत भरा। वे धीर थे, गंभीर थे, अत्यन्त प्रतिभावान थे, वे सूर्यसे तेजस्वि थे गुणवान थे, विद्वान थे । उनके हृदय में थी दया, संयम, नियम थे पालते, पाषाण हृदयों को अहो ! वे फूलसा कर डालते । आगम-सहित जलसे धुले उनके हृदय अतिस्वच्छथे, मानस सरोवर में न उनके पाप रूपी मच्छ थे ।
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