Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधककरता है तैसे ही जो नर मूरख हैं वे ही धर्म छोड़कर विषय सेवन करते हैं ॥५॥
३. इतिहासविद्या। इतिहास उस विद्याको कहते हैं जिसमें प्राचीन कालके राज्य वराजा और तीर्थकर महात्माओंका यथार्थ वर्णन हो. ऐसा कौन मनुष्य है, जो अपने बाप दादोंका हाल सुनना और पटना न चाहे ? किन्तु इस वातके पढनेकी सबको चाह होती है कि हमारे वाप दादे व उनसे पहिलेके लोग कैसे थे और जिसप्रकार हम इस अंगरेजी राज्यमें सुखी है, उसप्रकार हमारे पूर्वजोंने भीपहि. लेके राज्यों में सुख भोगा था या दुःख ? देशकी दशा पहिलेके समय कैसी थी, कौन २ राजा प्रतापी व न्यायी हुये और कौन २ राजा अत्याचारी व अन्यायी हुये, पहिले समयमें किस २ विद्याके पारगामी कौन कौनसे महात्मा व विद्वान् हो गये. इत्यादि बातोंका जिस पुस्तकसे हाल मालूम हो, उसहीका नाम इतिहास है. फारसी पढे हुए इसको तवारीख और अंगरेजी पढे हुए इस को हिष्ट्री कहते हैं. हरएक देशके इतिहासोंके भिन्न २पुस्तक बने हुए हैं परन्तु इतिहासोंमें अनेक पुरानी बातोंका पता नहिं लगा है. तथापि अनेक इतिहास पूरे भी है. इतिहासके मुख्य तीन भाग हैं. पार्योका प्राचीन समय १ मुसलमानोंका समय २ और अंगरेजोंका समय ३. हे बालको! तुमको भी इतिहास अवश्य
पढने चाहिये क्योंकि इतिहासोंके पढनेसे अनेक प्रकारकी शिक्षायें -- मिलती हैं।