Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ (७) ऊ सनूरे हो ॥६॥न ॥ कुसल में घर आवे, उत्सव करी नारी वधावे हो ॥ न ॥ कोटीधर माया उंमी,परदेशे पहुचे हूंमी हो ॥७॥ न॥ माहाजन सुखीया सुविशेषी, लाखे कोडे नही लेखो हो ॥ न ॥ देवल जिन हरि हर दीपे, जाणे मंदर गिरि जीपे हो ॥ ७ ॥ न० ॥ पो शाले धरम सुणावे, वमेरा निशाल नणावे हो ॥ ॥ न ॥ बहु होम यज्ञ ध्वनि झानी, हरिचंद तणी राजधानी हो ॥ ए॥ न ॥ विप्र दीसे वेद नणंता, हाहें होकार करता हो ॥ न० ॥ तिहां दीन फुःखी नहिं कोई, सुखवासी लोक सहु कोई हो ॥ १० ॥ न० ॥ ए ढाल कही श्म बीजी, सांजलीने करजो जीजी हो ॥ न ॥ मुनि कनकसुंदरनी वाणी, सुणतां रस अमिय समाणी हो ॥ ११॥ न ॥ ॥दोहा॥ ॥ नवरंगी नगरी तिहां, श्रीहरिचंद नरिंद ॥ तेज प्रता आगलो, दीपे जेम दिणंद ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 114