Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ ॥ ढाल बीजी ॥ राग रामग्री ॥ शीता तो रूपें रूडी, जाणे आंबामाले सूडी हो ॥ ए देशी ॥ ॥ अयोध्या अधिक विराजे, जिण आगल लंका लाजे हो।नगरी नवरंगी॥चवडी दीर्घ च तुरंगी, तेढी त्रिकूट त्रिनंगी हो ॥१॥न ॥ए आंकणी ॥ लांबी शेरी विच शेरी आडी अवली अधिकेरी हो ॥ न ॥ नर बयल विराजे बाजे, वलि पडहा बहुविध वाजे हो ॥२॥ न ॥ गोंखे बेठी गयगमणी, मन मोहे मृगा नयणी हो ॥ न ॥ कपूरे करुला कीजें, रंग जरी श्रा लिंगन दीजेहों ॥३॥ न० ॥ गढ कोट नदी वन वाडी, दीसे उछाह दिहाडी हो ॥ न एक वणज करे वणजारा, कर दाण न मंग लगारा हो ॥४॥ न० ॥ काश्मीर लाहोर अटारो, सो दागर अंत न पारो हो ॥न० ॥ खंगायत दीप प रारा, दक्षिण गुर्जर धरारा हो ॥५॥न० ॥ कर अकर न विकरे वराति, नरेनोगन माप मुकाती हो ॥ न० ॥ पर छिपे प्रवहण पूरे, देशांतर सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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