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२६ श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि ।
हवे " यः पूज्यः सर्वदेवानां” केतां जे प्रस्तुत महादेव, सर्व नवनपति आदिक देवोने पूजनीक बे, केम के, जे" वीतराग"
आदिक गुणोयें करीने युक्त होय, तेज देवोथी पूजाय जे; अने तेना पूजनिकपणाथी तेउनी प्रतिमाउनु पण पूजनीकपणुं सिद्ध थाय .
अथवा सघला हरिहरादिक देवो के जेउँ, जेठने (तेना मतवालाउने) पूजनिक , (तेऊना समूहनी अपेदाथी) एवा बौझादिकोने पण प्रस्तुत महादेवज पूजनीक बे; केम के ते पोतपोताना देवोने पूजता श्रका पण तत्वश्री तो प्रस्तुत महादेवनेज पूजे के अथवा तेना उपदेशश्री स्वर्ग अने मोदनो संग थशे, एम मानता थका तेने पूजे जे; अने उपदेश पण ग्रहण करवा लायक मोदनां विसंवादरहित ज्ञानश्री, तथा वीतरागपर अपेषपणुं होते तेज थाय जे; बीजी रीते थतो नथी. माटे एवी रीते पोताना देवमां पण सर्वपणा आदिक गुणोनुं आरोपण करीने तेने पूजे बे, अने तेश्री परमार्थथी तो ते प्रस्तुत महादेवज तेमनाथी पूजाय बेमाटे प्रस्तुत महादेव “सर्व देवोने (सर्व देवो के, पूजनिक जेने एवा बौछादिकोने) पूजनीक " एम कहेवू दूषणरहित बे. तथा वली, “योध्येयः सर्वयोगिनां" केतां जे आ प्रस्तुत महादेव सर्व अध्यात्मचिंतकोने ध्यान धरवालायक के केम के तेवा योगी पण, एवा वीतराग आदिक महान् गुणोवासानुंज ध्यान धरे के अने तेवा तो उपर कहेली रीते करीने अरिहंत प्रनुज . वली “यः सृष्टा सर्वनीतीनां" केतां जे सघला नैगम आदिक नयोना, अथवा साम आदिक नीतिना प्रकाश करवाएं करीने उत्पन्न करनारा
श्रा विशेषणथी केवल एमज नहीं जाणवू के, षनदेवप्रनुएज लोकोना व्यवहार माटे सामादिक नीति बनावी ,अने तेथी तेज "महादेव" कहेवाय अने बीजा अजितनाथ आदिक त्रेवीस
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