________________
षष्ठाष्टक.
पिंड दूषणवालो कहेवाय, पण बीजो दूषणवालो कहेवाय नहीं. वली आ जपर कहेलो पण केवल असंकल्पित पिंडनो अन्युपगम उत्तम नथी; एवो “ अपि" शब्दनो अर्थ बे. वली तेथी " यावदर्थिक" पिंडना परिहारना वादी एवा जे तमो, तेनो तमोए (पोतेज ) कहेला दूषणनो परिहार ( त्याग) सारी रीते थश् शकतो नथी. ( यावदर्थिक पिंड एटले, अमुक परिमाणवाला जे निकुर्ड, ते जे प्रयोजनरूप जे पिंड बनाववामां, तेवा पिंडने “ यावदर्थिक पिंड” कहीए.) कां ने के, “अशन, पान, खादिम, अने स्वादिम, ए चार प्रकारमांनुं जे कंई दानने अर्थे निपजावेलुं ने, एवं जो कई जाणवामां के, सांजलवामां आवे, तेवा जातपाणी आदिक संयमधारीने कटपे नहीं; अने कदाच लेवार जाय, तो पण "आ मने कटपे नहीं;" एम जाणीने परग्वी देवां.” हजु पण पूर्वपदनो वादीज कहे जे. विषयो वास्य वक्तव्यः, पुण्यार्थप्रकृतस्य च ॥
असंजवानिधानात्स्या, दाप्तस्यानाप्ततान्यथा॥५॥ अर्थ-(वादी कहे के, ) यावदर्थिक पिंडनो, तथा पुण्यमाटे करेला पिंडनो विषय कहेवो पडशे, अने जो एम नहीं कहो तो असंलवित वात कहेवाथी आप्तने अनाप्तता प्राप्त थशे.
टीकानो लावार्थ-यावदर्थिक पिंडना परिहारने कहेवावाला, एवा तमोए, आगल कहेला पिंडना परिहारनुं खोटापणुं अंगीकार करवु पडशे; अने जो एम अंगीकार नहीं करो तो “ याववदर्थिक पिंडनो” विषय कहवो पडशे. कोइ अमुक निकुकने आश्रिने आ बनावेलो , माटे ते परिहरवालायक , एवी रीतना विषयांतरनी कट्पनाश्रीज ते परिहरवाने शक्य , पण बीजी रीते नथी; एवो लावार्थ बे. वली केवल यावदर्थिकपिंडनो विषय कहवो पडशे, एटटुंज नहीं, पण पुण्य अर्थे बनावेला पिंडनो पण विषय कहवो पडशे; केम के पुण्यने माटे तै
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org