Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
अष्टादशमाष्टक.
१६१ उरभ्रेणेह चतुरः, शकुनेन तु पंच वै ॥ षण्मासांइछागमांसेन, पार्षतीयेन सप्त वै ॥१॥ अष्टावणस्य मांसेन, शौकरेण नवैव तु ॥ दशमासांस्तु तृप्यंति, वराहमहिषामिषैः ॥२॥ कूर्मशशकमांसेन, मासानेकादशैव तु॥ संवत्सरंतु तृप्यंति, पयसापायसेन तु ॥३॥
अर्थ-घेटाना मांसथी (पितृउने) चार मासनी, पक्षिना मांसथी पांच मासनी, बकाराना मांसभी मासनी, सफेद डाघावाला मृगना मांसथी सात मासनी, हरिणना मांसथी आउ मासनी, सूकरना मांसथी नव मासनी, वराह अने पाडाना मांसथी दश मासनी, काचबा अने ससलाना मांसथी श्रगीयार मासनी, अने दूध तथा दूधपाकथी एक वर्षनी तृप्ति थाय बे.
वली परोणानो विधि याज्ञवटक्ये नीचेप्रमाणे कह्यो जे. महोक्षं वा महाजं वा, श्रोत्रियाय कल्पयेत् ॥ श्रर्थ-श्रोत्रियने माटे मोटो बलद अथवा मोटो बकरो मारवो. तथा मांस पोताना प्राणना रक्षाण माटे खावू; केमके कह्यु के, सर्व आपदाथी आत्मानुं रक्षण करवं. ___ एवी रीते वादीए कह्यु के, शास्त्रसंबंधी मांसजक्षणमां दोषनो अनाव अमो कही बीयें, पण सामान्यपणाथी कहेता नश्री; एवी रीतना तेना मतनुं खंडन करता थका हवे आचार्य महाराज कहे .
अत्रैवासावदोषश्चे, निवृत्तिर्नास्य सज्यते॥ अन्यदानदणादत्रा, जदणे दोषकीर्तनात् ॥७॥
अर्थ- हे वादी !!! जो आ यज्ञ आदिकमां मांसजक्षणने निर्दोष मानशो, तो तेनी निवृत्ति संजवशेज नहीं; केमके, ते यशादिक काल शिवाय मांसलक्षणनो निषेध ; (केमके, यज्ञा
२१
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220