Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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वात्रिंशतितमाष्टक.
२०५
कानोजावार्थ - ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे. ) हवे तेज ने बीजा दें करी ने कहे बे.
स्वस्थस्यैव नैषज्यं, स्वस्थस्य तु न दीयते ॥ प्रवास स्वास्थ्यकोटीनां, जोगोऽन्नादेरपार्थकः ॥५॥ अर्थ - रोगीने औषध देवाय बे, पण निरोगीने देवातुं नथी; माटे एवी रीते प्राप्त थएल बे स्वस्थतानी कोटी जेउने, एवा सियोने नादिकनो परिोग अनर्थक बे.
टीकानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) किंचित्करकंज्ञेयं, मोहाजावाडताद्यपि ॥
तेषां कंड्राद्यजावेन, दंतकंभूयनादिवत् ॥ ६ ॥ अर्थ - पुंवेदादिक मोहनीयना अनावश्री रतादिक पण ते सिद्धोने निष्फल जावं; केम के, खर्ज श्रादिकना श्रावथी, खर्ज करवानुं पण निरर्थक बे.
टीकानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकनार्थने मलतोज बे.) हवे सिना सुखनुं स्वरूप कहे बे. परायत्तमौत्सुक्य, रहितं निष्प्रतिक्रियम् ॥ सुखं स्वाजाविकं तत्र नित्यं जयविवर्जितम् ॥ ॥ अर्थ- सोनुं सुख स्वाधिन, तथा विषयनी आकांक्षाविनानुं, तथा प्रतिक्रिया विनानुं, तथा स्वाभाविक, नित्य, अने करीने रहित a.
टीकानोजावार्थ - ( उपरना श्लोकनार्थने मलतोज बे.) परमानंदरूपं तद्. . गीयतेऽन्यैर्विचक्षणैः ॥ इत्थं सकलकल्याण, रूपत्वात्सांप्रतं ह्यदः ॥ ८ ॥ - बीजा विचक्षण एवा अन्यदर्शनी ते सुखने पर -
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