Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२०४
श्री हरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि ।
हवे परम पदनुं स्वरूप देखाडता थका कहे बे. यन्न दुःखेन संन्निं न च चष्टमनंतरम् ॥
जिलापापनीतं य, तद्यं परमं पदम् ॥ २॥ अर्थ- जे दुःखी मिश्रित नथी, तथा जे दीए यतुं नथी, तथा जे ांतराविनानुं बे, तथा जे इवाउँथी रहित बे, तेने परमपद जाणवुं.
टीकानो जावार्थ - ( श्लोकनार्थने मलतोज बे.) मोक्ष एकांतसुखना संगमवालो बे, एम उपर कहुं, तेमां परनी विप्रतिपत्ति देखाडता थका हवे कहे बे. कश्चिदाहान्नपानादि, जोगाजावादसंगतम् ॥ सुखं वै सिद्धिनाथानां पृष्टव्यः स पुमानिदम् ॥३॥ अर्थ - ( पारमार्थिक सुखना स्वरूपने नहीं जानारो) एवो कोइक पुरुष हीं एम कहे के, मोदे गएलाउने तो, त्यां अन्न, पाणी, पुष्प, स्त्री यदिकना जोगोनो श्राव होवाथी, तेजने सुख घटी शकतुं नथी; ( त्यारे आचार्य महाराज कहे बे के, ) तेवा पुरुषने नीचेप्रमाणे पूवुं.
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टीकानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) हवे ते पूवानुं कहे .
किं फलोsन्नादिसंजोगो, बुजुादिनिवृत्तये ॥ तन्निवृत्तेः फलंकिंस्या, त्स्वास्थ्यं तेषां तत्सदा ॥४॥
- अन्नादिकनोजे संजोग, ते शुं फलवालो बे ? त्यारे ते वादी एम कहे के, सुधा आदिकनी निवृत्तिने माटे बे; त्यारे वली श्राचार्य महाराज तेने पूढे वे के, ते दुधा श्रादिकनी निवृत्तिनुं शुं फल बे ? त्यारे वली वादी एम कहे के, तेनुं फल स्वस्थता बे; त्यारे वली श्राचार्य महाराज तेने कहे बे के, ते स्वस्थता तो ते सिद्धोने हमेशनीज बे.
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