Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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एकविंशतीतमाष्टक.
१७५
अर्थ - ( सुग्रीवे पोतानी स्त्री ताराना मलवाथी रामचंद्रजीने क के) मारां गोमां जले घडपण यावो ? ( पण सामा उपकार करवावडे करीने पालुं उपकृत मा थार्ज ) केम के, तमोए ( बलिपासेश्री मारी स्त्री ताराने बोडावीने) मारापर उपरकार कर्यो . केम के, उपकृत माणस सामा उपकारमाटे, उपकारीने ज्यारे आपदा पडे, त्यारेज फलने मेलवे बे.
टी कानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकनार्थने मलतोज बे.) एवीज रीते सघली प्रवृत्तिमां पण व्याघात वे बे, ते देखाडता थका हवे करे बे.
एवं विरुद्धदानादौ, हीनोत्तमगतेः सदा ॥ प्रव्रज्यादिविधाने च शास्त्रोक्तन्यायबाधिते ॥ ७ ॥ द्रव्यादिदतो ज्ञेयो, धर्मव्याघातएव हि ॥ सम्यग्माध्यस्थ्यमालंव्य, श्रुतधर्मव्यपेक्षया ॥८॥
॥ युग्मम् ॥
अर्थ-एवी रीते, विरुद्ध दानादिकमां, तथा शास्त्रमां कहेला न्यायथी बाधित एवा, दीक्षा श्रादिकना ग्रहण करवामां, दीन प्रते उत्तमपणाना बोधथी, हमेशां पव्यादिकना दथी धर्मनो व्याघातज थाय छे. माटे सारी रीते मध्यस्थपणाने - श्रीने, श्रागमनी अपेक्षायें करीने, ते जावो.
"
टीकानो जावार्थ जेम रोगीने धर्मबुद्धिथी औषध देवाना निग्रहमां, बुद्धिदोषथी धर्मनो व्याघात थाय बे, तेम शास्त्रमां निवारण करेला एवा धाकर्मादिक आहार देवामां अथवा कुपात्र हा देवाचादिकमां पण सूक्ष्म बुद्धिविना धर्मनो व्याघातज थाय बेः शामाटे ? के, हीनप्रते उत्तमपणाना ज्ञानथी, ज्यारे दान देवाय, त्यारे प्रगट रीतेज धर्मनो व्याघात थाय बे; वली केवल विरुद्धदानादिकमांज धर्मनो व्याघात थाय बे, तेम
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