Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 203
________________ सप्तविंशतितमाष्टक. ११ माटे एवा जिनेश्वर प्रनुनेज महन्महत्व घटी शके ने, अने तेज जगतना पण गुरु बे. टीकानो नावार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) एवी रीते वीशमा अष्टकनुं विवरण संपूर्ण आयुं. सप्तविंशतितमाष्टकं प्रारज्यते. एवी रीते उपर जगशुरुनु महादान कडं, पण ते युक्त नथी, एवी रीते परमतने देखाडता का हवे कहे जे. कश्चिदाहास्यदानेन, कश्वार्थः प्रसिध्यति ॥ मोक्षगामी ध्रुवं ह्येष, यतस्तेनैव जन्मना ॥१॥ अर्थ- कोइक एम कहे के, तेना दानश्री कयो पुरुषार्थ सिद्ध वानो , केम के, ते तो तेज जन्में करीने खरेखर मोदगामी . टीकानो नावार्थ- ( श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) हवे तेनो उत्तर आपे .. उच्यते कल्पएवास्य, तीर्थकृन्नामकर्मणः॥ उदयात्स्सर्वसत्त्वानां, हित एव प्रवर्तते ॥ अर्थ- तीर्थकर प्रनुनो ते श्राचारज कहेवाय बे; केम के, तीर्थकरनामकर्मना उदयथी ते सघला प्राणीना हितमांज प्रवर्तेने टीकानो नामार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) हवे बीजो परिहार कहे . धर्मागख्यापनार्थं च, दानस्यापि महामतिः॥ अवस्थौचित्ययोगेन, सर्वस्यैवानुकंपया ॥३॥ अर्थ- दानने, धर्मना एक अंगरूप कहेवामाटे, महाबोधवाला एवा प्रनुए, अवस्थाना उचितपणाना योगथी अथवा सवनी अनुकंपायें करीने, दान दीधुं . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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