Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 201
________________ १ए षविंशतितमाष्टक. बुझ्नु महादान , एम कहेतो श्रको हजु वादीज कहे . अन्यस्त्वसंख्यमन्येषां, स्वतंत्रेषूपवर्ण्यते ॥ तत्तदेवेह तयुक्तं, मदनब्दोपपत्तितः॥२॥ अर्थ-बीजा एटले बौद्ध लोको, पोताना बोधिसत्वोनुं दान, पोताना शास्त्रमा असंख्यातुं कहे जे; एवी रीते " महत्" शब्दनी उपपत्तिथी, तेनुं ते दान युक्त ने. टीकानो लावार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) तेथी शुं ? ते हवे कहे . ततो महानुजावत्वा, तेषामेवेह युक्तिमत् ॥ जगजुरुत्वमखिलं, सर्वं हि महतां महत् ॥३॥ अर्थ-ते महादानना योगथी, तेउनेज सघलु जगतनुं गुरुपणुं, युक्तिवालुं , केम के, महानोनुं सघलुं कार्य महानज होय बे. टीकानो लावार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज .) हवे ते पूर्वपदने उपसंहरता थका कहे जे. एवमादेह सूत्राथ, न्यायतोऽनवधारयन् ॥ कश्चिन्मोहात्ततस्तस्य, न्यायलेशोऽत्रदर्श्यते ॥४॥ अर्थ- एवी रीते कोक बौध, मूढताथी, सूत्रना अर्थने न्यायथी नहीं जाणीने कहे ने माटे तेने हवे तेमां न्यायनो खेश देखाडाय बे. टीकानो जावार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज .) हवे तेनाज प्रतिपादन माटे कहे . महादानं हि संख्याव, दर्थ्यनावाङगजुरोः॥ सिर्फ वरवरिकात, स्तस्याः सूत्रे विधानतः ॥५॥ अर्थ- याचकना अनावशी, जगशुरुर्नु (तीर्थकरनुं ) दान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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