Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
१७६ श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि । होय जे; केमके, ते गोवस्थामां पण जगतना गुरु एवा, श्रीमहावीर स्वामीनो उचित अनिग्रह संललाय . हवे ते अनिग्रह केवो? ते कहे .. पित्रुटेगनिरासाय, महतां स्थितिसिद्धये ॥ ईष्टकार्यसमृध्यर्थ, मेवं नूतो जिनागमे ॥३॥ अर्थ- माबापना उप्रेगनो नाश करवा माटे, तथा महानोनी सिद्धि माटे तथा मोक्षरूपी जे इष्टकार्यनी समृद्धि, तेने माटे, एवी रीतनो अभिग्रह आप्तना आगममां संजलाय . हवे जेवो ते अनिग्रह संजलाय , ते कहे . जीवतो गृहवासेऽस्मिन् , यावन्मे पितराविमौ ॥ तावदेवाधिवत्स्यामि, गृहानहमपीष्टतः॥४॥ अर्थ- (श्री वीरप्रनुए अनिग्रह लीधो के, ) ज्यांसुधी श्रा गृहस्थावासमां मारां मातपिता जीवे, त्यांसुधी हुँ पण मारी श्वाथी घरमां रहीश.
टीकानो नावार्थ-श्री महावीर स्वामी नगवान देवनवश्री चवीने, पूर्व उपार्जन करेला नीचगोत्रकर्मना उदयथी ब्राह्मणकुंडग्राम नामना नगरमांशषनदत्त नामना ब्राह्मणनी देवानंदा नामनी स्त्रीनी कुदीए उत्पन्न श्रया; पनी एंसीमे दिवसे पोतानुं आसन चलित थवाथी, इंझे अवधिज्ञानथी ते वात जाणीने, हरिणगमेषी नामना देवनी मारफते, क्षत्रीयकुंड नामना नगरना सिद्धार्थ राजानी त्रीशला नामनी राणीना गर्नमां प्रजुने संक्रमाव्या. त्यारे देवानंदा, पोते जोएलां चौद स्वप्नना अपहारथी पोताना गर्जनो संहार जाणीने, अत्यंत शोकरूपी समुषमा डुबवा लागी; त्यारे लगवाने अवधिज्ञानथी जाण्यु, के, अहो ! मारा निमित्तथीज श्राने श्राद्धं बधुं दुःख थयुं !!! पण हवे मारा अंगहलनथी श्रा त्रिशलामाताने मुःख न थाय, तो सारूं, एम विचारिने न
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220