Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 195
________________ १८३ चतुर्दशमाष्टक. बीजुं पापनुबंधि पुण्य, त्रीजुं पापानुबंधि पाप, अने चोथु पुण्यानुबंधि पाप. तेढमांथी पेहेला लांगानुं स्वरूप हवे कहे . गेहाद्गेहांतरं कश्चि, छोजनादधिकं नरः॥ याति यत्सुधर्मेण, तहदेवजवादनवम् ॥१॥ अर्थ- जेम कोश्क पुरुष सारा घरमांथी निकलीने तेथी वधारे सारा घरमां जाय , तेम पुण्यानुबंधि पुण्यश्री प्राणी मनुप्यरूपी सारा नवमांथी निकलीने, तेथी वधारे सारा एवा देवजवमा जाय . टीकानो नावार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज .) हवे बीजा नांगानुं स्वरूप कहे .. गेहादू गेहांतरं कश्चि, बोजनादितरन्नरः॥ याति यदसकर्मा, तहदेवनवादूनवम् ॥२॥ अर्थ-जेम कोइ पुरुष सारा घरमांथी निकलीने नगरा घरमां जाय , तेम प्राणी पापानुबंधि पुण्यथी मनुष्य रूपी सारा नवमांथी निकलीने, नारकी आदिक नगरा जवमा जाय .. टीकानो नावार्थ- ( उपरना श्लोकना अर्थने मलतोज जे.) हवे त्रीजा नांगानुं स्वरूप कहे . गेहाद्गेहांतरंकश्चि, दशुनादधिकं नरः॥ यातियन्महापापा, त्तहदेव नवादूनवम्॥३॥ अर्थ- जेम कोई पुरुष नगरा घरमांथी निकलीने, तेथी पण वधारे नगरां घरमां जाय , तेम प्राणी पापानुबंधि पापथी तियेच आदिकना जवथी निकलीने, तेथी वधारे नगरा एवा नारकी आदिकना नवमां जाय . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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