Book Title: Haribhadrasuri krutanyashtakani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
१८२
श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि ।
टी कानो नावार्थ - ( उपरनां श्लोकना अर्थने मलतोज बे.) शासनना मलीनपणाने तजवानो उपदेश दइने, हवे तेनुंज जे कंई करवुं, तेनो उपदेश देता थका कहे बे.
कर्तव्या चोन्नतिः सत्यां, शक्ता विह नियोगतः ॥
वंध्यं बीजमेषाय, त्तत्त्वतः सर्वसंपदाम् ॥ ७ ॥ अर्थ- पोतानी शक्तिप्रमाणे श्रा जिनशासनमा अवश्यें करीने, उन्नति केतां प्रजावना करवी; केम के, ते प्रभावना तत्वथी सर्व संपदानुं फल उपजावनारूं बीज बे.
टीकानो जावार्थ - ( उपरमा लोकना अर्थने मलतोज बे.) ते केम ? ते हवे कड़े बे.
श्रत उन्नतिमाप्नोति, जातौ जातौ हितोदयम् ॥
यं नयति मालिन्यं, नियमात्सर्ववस्तुषु ॥ ८ ॥ अर्थ- एवी रीते जिनशासननी उन्नति करवाथी, जवजव प्रते (प्राणी) जाति, कुल, रूप, ने विजव यादिकथी उन्नतिने पामे बे ने जाति, कुल, बुद्धि श्रादिक सर्व जावोमां पोतानां दुषणोनो अवश्यें करीने नाश करे बे.
टीकानो जावार्थ - ( उपरना श्लोकनार्थने मलतोज बे.) एवीतेवी शमाष्टकनुं विवरण संपूर्ण थयुं.
चतुर्विंशतीतमाष्टकं प्रारज्यते.
एव ते शासननी उन्नति करवाथी प्राणी हितना उदयवाली उन्नतिने पामे बे; एम कां; त्यारे अहीं कोइ शंका करे के, हितना उदयवाली पण शुं कोइ उन्नति बे ? त्यारे तेने कहे बे के, तेवी पापनुबंधि पुण्यजन्य उन्नति बे; अने तेना पुण्यापुण्यना विचा रमां नीचेप्रमाणे चार जांगार्ड थाय बे. एक पुण्यानुबंधि पुष्य,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220