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चतुर्थाष्टक. अहीं वादी शंका करे के, ज्यारे एम बे, त्यारे तो गृहस्थे पण पूजादिक नहीं करवां जोएं.
त्यारे तेने कहे जे के, एम नहीं, केम के, जैन गृहस्थो कई राज्यादिक मेलववामाटे पूजा करता नथी; तेम “ राज्य आदिकथी उत्पन्न थतां पापोने अमो दान आदिकथी शोधशें,” एम पण मानता नथी. पण फक्त मोदने माटेजतेनी पूजादिकमां प्रवृत्ति जे. वली मोदना अर्थी एवा आगमानुसारीने वीतरागनी पूजा आदिकथी मोदरूपज मुख्य फल मले बे, अने राज्य आदिक तो प्रसंगेप्रसंगे मलतुं फल बे; माटे गृहस्थीने पूजा आदिक अ'विधेय ( नहीं करवा लायक ) नथी, एवी रीते दीक्षित अने वगरदीक्षितने तेनी क्रियानुं अनुक्रमे तुरत अने परंपराधी मोक्षरूप फल मले . ___ अहीं वादी शंका करे के, दीक्षितने पण जो संपदा मेलववानी श्या होय, तो तेने पण व्यअग्निकारिका करवी युक्त जे. तेने माटे हवे ते वादीने कहे जे.
मोदाध्वसेवया चैताः, प्रायः शुजतरा नुवि ॥ जायंते ह्यनपायिन्य, श्यं सहास्त्रसंस्थितिः॥७॥
अर्थ-मोक्ष मार्गनी सेवाथी ते संपदा प्रायें करीने पृथ्वीमां वधारे शुन, तथा पापरहित थाय के अने एवी रीतनी स्थिति आगममां कहेली बे.
टीकानो नावार्थ-सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन अने सम्यग् चारित्ररूपजे मोदमार्ग, तेनी सेवायें करीने, ते संपदार्ज वधारे शुन बे, पण ते अव्य अग्निकारिकानी कार्यनूत एवी ते संपदाउँ, पापहेतुयें करीने अशुल ने, अने तेथी मोक्ष मार्गनी सेवायें करीने अग्निकारिका करवाथी, उपर कहेली अग्निकारिकाना फलजूत एवी संपदा प्रायें करीने, तेना करवावालाई प्रते आ पृथ्वीमां वधारे शुलरूप थाय ने अहीं "प्रायें" कहेवानी मतलब ए के,
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