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प्रथमाष्टक.
टीकानो नावार्थ-उत्तम वैद्यनां उपदेशश्री जेम कुष्टादिक रोगनो सर्वथा प्रकारे नाश थाय ने, तेवीज रीते ते प्रस्तुत महादेवनां उपदेशथी अवश्य करीने संसारनो क्षय थाय ने अहीं " संसार" एवा शब्दें करीने एक नवश्री बीजा नवमां संचरवापणुं कह्यु, अने तेथी परलोकनुं बतापणुं देखाड्यु; अने तेने माटे नीचे प्रमाणे प्रमाण जाणवू...
कार्य कार्यातराजातं, कार्यत्वादन्यकार्यवत् ॥ जन्मेदमपि कार्यत्वं, न व्यतिक्रम्य वर्तते ॥ १॥
अर्थ-कार्य होवाथी अन्य कार्यनी पेठे बीजां कार्यश्री कार्य थाय ने, अने ( तेज न्यायें करीने) आ जन्म पण कार्यपणाने नसंघीने वर्ततो नथी.
वली जन्म, ज्ञाननां संतानविशेषरूप ने, अने तेथी तेनां जपादान कारणजूत तप एवो जन्मांतर अनुमित थाय ने पण ते जन्मनां उपादान कारणमां पिता आदिकने नहीं जाणवा, ___ हवे प्रकरणनां अर्थने उपसंहरता थका, जेना गुणोनुं विवेघन करेलु डे, एवा ते प्रस्तुत महादेवने नमस्कार करवामाटे कहे .
एवंनूताय शांताय, कृतकृत्याय धीमते ॥ महादेवाय सततं, सम्यगजक्त्या नमोनमः॥७॥
अर्थ-एवी रीतनां गुणवाला, शांत, करेलां ने कार्यो जेमणे एवा, तथा बुद्धिवान एवा ते महादेवप्रते हमेशां उत्तम नक्तिश्री नमस्कार था. ___टीकानो लावार्थ-एवी रीतनी उपर वर्णवेली गुणसंपदाने प्राप्त अएला, पण अन्य दर्शनीउए मानेला एवा नहीं; तथा शांत एटले राग घेष विनाना, (श्रा विशेषण अनुवादरूप में, माटे तेमां पुनरुक्ति दोष जाणवो नहीं.) तश्रा केवलज्ञानरूप ने बुधि जेने एवा, अथवा (बीजा आचार्योना मत प्रमाणे)
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