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(१५) अने प्रमाणिक मानता नथी, तेओनी शी गति थशे ? ते अमे जाणी शकता नथी. (अर्थात् घणीज माठी गति थवी जोइए.) केमके श्रुतनो अपलाप करवो ए महा मोठं पाप छे. मूढ बुद्धिबाळाए “महानिशीथ नामनुं सूत्र श्रुत कहेवाय के नहीं, एवो संदेह रहे छे" एम कदी पण कहेवू नहीं. केमके नंदिसूत्र अने पाक्षिकसूत्र विगरेमा "निसीहं महानिसीहं " ए प्रमाणे प्रत्यक्ष कमु छे. ( तेथी ते श्रुत छ, एम सिद्ध थाय छे. ) वळी "नंदिसूत्रादिक पण श्रुत गणाय के नहीं ? " एवी शंका करवी नहीं. कारण के एम कहेवाथी श्री आचारांग अने औपपातिक ( उववाइ ) विगेरे सूत्रो के जे हालना समयमा वर्तमान छ, तेमनुं पण नंदिसूत्रादिकमां श्रुतपणुं कहेलुं छे तेथी तेमने पण श्रुतरहितपणानो प्रसंग आवशे, ते निवारण करी शकाशे नहीं. अने ए प्रमाणे समीक्षा ( विचार ) कर्या विना भाषण करवावडे आशातना करनारा पुरुषोने जिनादिक देवने विषे पण जेम तेम प्रलाप करवामां बांधो आवशे नहीं. ( अर्थात् तेमने कोइ अटकावे तेम नथी.) आ प्रमाणे महानिशीथy प्रमाणपणुं सिद्ध थाय छे छतां जेओ अनंत संसारनां दुःसह दुःखोथी पण नहीं भय पामतां छतां केवळ कंदांग्रहने लीधे मोटा साहसने अंगीकार करीने महानिशीथने प्रमाणरूप न मानता होय, सेओने पण उपधान तप तो अंगीकार करवानुं छेज, कारण के चौद पूर्वधारी श्रीभद्रबाहु स्वामीए रचेला दशवकालिकनियुक्ति आदि ग्रंथोमां-" काले विणए बहुमाणे उवहाणे० ( काळ, विनय, बहुमान, उपधान," ए गाथामां उपधान प्रत्यक्ष रीते करवायूँ कहुं छे. समवा