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(२२२) ॥ श्री श्रुतज्ञानना दुहाना अर्थ.॥ ___ श्री श्रुतज्ञानने सर्वदा वन्दना करो के जेना चौद अथवा वीश भेदो छे. ते बन्नेमाथी हुं. चौद भेदोनुं वर्णन करुं छु. जे सर्व श्रुतना स्वामी ते श्रुतकेवलि कहेवाय छे.॥१॥ अकारना अढार' भेदो छे. तेज प्रमाणे सर्व अक्षरोना भेदो जाणवा. लब्धि, संज्ञा अने व्यञ्जन" एम त्रण प्रकारना अक्षरोने अक्षरश्रुत जाणवू ।।२॥(पहेलो भेद)। प्रवचन १ श्रुत २ सिद्धान्त ३ आगम ४ समय ५ ए सर्व जेना पर्यायी नाम छे एवा श्रुतज्ञानतुं व्याख्यान करीने तेमज तेना व्याख्यान करनारा श्रुतज्ञानीना चरणकमलोने चित्तमा लावीने घणा प्रकारना स्नेहथी तेनी पूजा करो. ॥३॥ हस्तरूपी लतानी चेष्टा (खोखारो उधरस उच्छासादि ) विगेरेए करी अन्तर्गत भाषा जणावे ए
१ अकारना इस्व दीर्घ अने प्लुत एम त्रण भेदो छ, वली ते दरेकना उदात्त अनुदात्त अने स्वरित एम त्रण त्रण भेदो छे, एटले नव, ते नवने सानुनासिक निरनुनासिक एम बे भेदे गुणतां अढार भेदो जाणवा. ___२ पुस्तकमां लखेला अक्षरो वांचवाथी तथा मोठेथी बोलाता अक्षरो सांभलवाथी थतुं ज्ञान.
३ पूर्वे वर्णवेली अढार प्रकारनी लिपीरूपी अक्षरो. ४ वचन योगे करी मोठेथी बोलाता अक्षरो.
५ आ कर्मग्रंथ टीकानो मत छे, विशेषावश्यकादिकमां चेष्टामां श्रुतनुं लक्षण नहि होवाथी चेष्टाने श्रुतपणुं कहेता नथी.