Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 244
________________ (२३४) ॥श्री केवलज्ञान संबंधी चैत्यवन्दननो अर्थ ॥ श्री जिनेश्वर प्रभु चार ज्ञानी थइ शुक्ल ध्यानना अभ्यासे करी अधिक अधिक आत्मस्वरूपने क्षणे क्षणे प्रकाशे छे. ॥ १ ॥'मु. षुप्ति (निद्रा), स्वम, अने जागृत ए त्रण दशा दूर थाय छे अने चोथी जे उज्जागर दशा तेहना अनुभवने जुए छे ॥ २ ॥ अपूर्व शक्तिना संबन्धथी क्षपक श्रेणिए चढी, चाथा ( संज्वलन ) कषायना वियोगे करी बारमुं ( क्षीणमोह , गुणठाणुं पामी, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय ने अन्तराय ए चार दुष्ट निबिड घातिकर्मनो क्षय करी, परमात्मजाति थया छे. ॥ ३ ॥ ४ ॥ सर्ववस्तुमां बे धर्म १ मिथ्यादृष्टि जीवोने अतिशय शयन करवारूप सुषुप्ति नामनी प्रथम अवस्था होय छे ॥१॥ शयनरूप बीजी स्वप्न अवस्था सम्यग्दृष्टि जीवोने होय छे ॥२॥अप्रमत्त मुनिने त्रीजी जागृत अवस्था होयछे।।३॥ अने चोथी उज्जागर दशा अनुभवनी वृद्धिथी आगल आगल चढतां यावत् सयोगि केवलि गुणठाणा सुधी होय छे. ॥४. प्रथमनी सुषुप्ति अवस्था मोह मूढ आत्माने थती होवा थी अनुभववन्त महात्माओने ते नथी होती, तेमज बीजी स्वप्न अने त्रीजी जागर दशाओ पण कल्पनामां गुंथायेला जीवोने उत्पन्न थती होवाथी कल्पना वर्जित अनुभवि महात्माओने होती नथी.मात्र अनुभव ज्ञानमां तो चोथी उज्जागर दशाज होय छे. कहुं छे के. नसुषुप्तिरमोहत्वान्नापि च स्वापजागरौ ॥ कल्पनाशिल्पविश्रान्तेस्तुर्या चानुभवे दशा ॥१॥

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