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(२३१) (यथार्थ छे) हे भव्यजीवो ! तमे केवलज्ञानने वन्दना करो. पंचमीनो दिवस गुणनी खाण छे. ॥ १॥ अनामी प्रभुना नाम संबंधी शो विशेष कहेवाय ? परंतु ते (विशेष) 'मध्यमा तथा वैखरी (भाषाना भेदो) वडे वचनना उल्लेखमा स्थापन करी शकाय. ॥ २ ।। हे प्रभु ! आप ध्यान अवसरे लक्ष्यमां न आवी शको तेवा अगोचर स्वरूप थाओछो, तोपण मुनिना राजा (योगि महात्माओ) परा तथा पश्यन्ती (भाषाना भेदो) पामीने तेनो काइक निश्चय करे छे. ॥ ३ ॥ ज्ञाननी विद्यमान जे सत्पर्यायो ते तो पलटाती नथी, परन्तु ज्ञेय ( विषय ) नी जुदी जुदी नव पुराणादि सर्व वर्तनाओ एक समयमां जणाय छे. ।। ४ ॥ बीजा (मत्यादि चार ) ज्ञाननी सर्व प्रभानो आ ज्ञानमा समावेश थइ जाय छे. केमके सूर्यना तेजथकी नक्षत्रादि ज्योतिष्चक्रनो समूह कांइ अधिक नथी ॥५॥ ज्ञानना अनन्ता गुण
१ आ चार भाषानुं स्वरूप जुदा जुदा रूपे आ नीचे लखेल श्लोकोथी अन्य ग्रन्थोमा प्रतिपादन कर्यु छे.. वैखरी शक्तिनिष्पत्तिमध्यमा श्रुतिगोचरा ॥ द्योतितार्था तु पश्यन्ती सूक्ष्मा वागनपायिनी ॥ १ ॥ मूलाधारात् प्रथममुदितो यस्तु तारः पराख्यः । पश्चात्पश्यन्त्यथ हृदयगो बुद्धियुष्यमाख्यः॥ वके वैखर्यथ रुदिषोरस्य जन्तोः सुषुम्णा । बद्धस्तस्माद्भवति पवनप्रेरितो वर्णसङ्घः ॥ १॥