Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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( २३२ )
( आपे छे. ते दान ) लइने देवो तथा मनुष्यो हर्ष पाम छे. ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ आ विधिए करी सर्व अरिहंत भगवन्तो ज्यारे सर्वविति ( चारित्र) उच्चार करे छे ते वखते निर्मल मनःपर्यवज्ञान तेमना आत्माने अनुसरे छे (पामे छे). || ३ || जे मुनिओने विपुलमतिमनः पर्यव ज्ञान उत्पन्न थाय छे ते अमतिपाती होय छे.आ चोथुं ज्ञान अप्रमत्त ऋद्धिवन्त गुणस्थानके जाणवुं ॥ ४ ॥ चोवीश जिनेश्वर भगवन्तना 'एकलाख पीसतालीश हजार पांचसे ने एकां मनः पर्यवज्ञानी मुनिराजोने जाणी तेमने वखाणीए || ५ || जे ज्ञान मनना सर्व संशयोनो नाश करे छे ते ज्ञानने हुं स्नेह धारण करीने वन्दन करुछु. विजयलक्ष्मी, कल्याणकारी भाव विगेरे अनुभव ज्ञानना अनेक गुणो छे. ॥ ६ ॥
१ ऋषभ - १२७५०, अजित - १२५००, संभव - १२१५०, अभिनंदन - ११६५०, सुमति - १०४५०, पद्मप्रभ - १०३००, सुपार्श्व - ९१५०, चंद्रप्रभ - ८०००, सुविधि - ७५००, शीतळ - ७५००, श्रेयांस - ६०००, वासुपूज्य - ६०००, विमल - ५५००, अनन्त५०००, धर्म - ४५००, शान्ति - ४०००, कुन्धु - ३३४०, अर - २५५१, मल्लि - १७५०, मुनिसुव्रत - ११००, नमि- १२५०, नेमि - १०००, पार्श्व - ७५०, वर्धमान - ५००, कुल - १४५५९१ मनःपर्यवज्ञानीओनी संख्या छे

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