Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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(२३०) वृद्धि थवाथी संयम गुणठाणे (सातमे) होय छे. तेम जाणो. 'साकारोपयोगना स्थानक ते ज्ञानथी मनना पर्यायोने निश्चये करी जाणे छे, विचारणामां आवेला मनोद्रव्यना अनन्ता स्कन्धो जाणे छे पण (ग्रहण कर्या विनाना मात्र) आकाशमा रहेला मनोवगणाना द्रव्यने जाणता नथी ॥ १ ॥ २ ॥ ३ ।। संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवे काय योगे ग्रहण करेला अने मनोयोगवडे मन पणे परिणमावेला मनोद्रव्य, मनःपर्यव ज्ञानी जाणे छे ॥ ४ ॥ मनुष्य क्षेत्रमा तीर्छ अढीद्वीप सुधी देखे छे, अधो लोकमा तिर्छालोकना मध्यभागी एक हजार योजन देखे छे, ॥ ५ ॥ ऊर्यलोकमा ज्योतिश्चक्र सुधी (९०० योजन ) जाणे छे. कालथी पत्योपमना असंख्यातमा भाग जेटला काळ सुधीना अतीत अनागत पदार्थोना पर्यायो जाणे छ. ॥ ६ ॥ भावथी चिन्तवेला द्रव्यना असंख्याता पर्यायो जाणे छे. ऋजुमति मन:पर्यव करतां विपुलमति मनःपर्यववालो वधारे भावो वर्णवे छे (जाणे छे.)॥७॥ (चिन्तववामां आवेला) मनना पुद्गलो जोइने अनुमाने करी सत्य पदार्थ (वात) ग्रहण करे छे, जे (मनःपर्यवज्ञान ) असत्यपणाने पामतुं नथी ते ज्ञानमां माझं मन आनन्द पाम्युं छे. ॥ ८ ॥ अरूपिपदार्थोंने प्रत्यक्षपणे ज्ञानादिलक्ष्मी वडे पूज्य एवा भगवंतो (जिनेश्वर) . १ मन:पर्यव संबन्धी दर्शन नथी. तेने प्रथमथी ज्ञानन थाय छे.
२ द्रव्यथी मन: पर्यायना विषयतुं स्वरूप कहे छे. ३ क्षेत्रथी स्वरूप.

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