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(२२८) ॥ श्री अवधिज्ञाननी स्तुतिनो अर्थ. ॥ सर्व तीर्थंकरो अवधिज्ञान सहित (देवादि भवमाथी) च्यवीने मातानी कुक्षीमां अवतार लेखे. जे प्रभुना नामे करी मुख वृक्षने प्राप्त करीए, अने जे प्रभु सर्व ईति ( अतिष्टि अनादृष्टयादि ) उपद्रवोने टालनारा छे तेमज इन्द्र तथा अध्यापकना संशयने दूर करनारा श्री वीरप्रभु महिमा तथा ज्ञानना आकर छे. तेज माटे ते वीरप्रभु विश्वना पालक तथा विजय सहित लक्ष्मी सुखने प्राप्त करावनारा छे. ॥ १॥
॥ श्री अवधिज्ञानना दुहाना अर्थ ॥ अवधिज्ञानना असंख्य' भेदो छे तेमां सामान्ये करी छ भेदो छे, जघन्यथी अवधिज्ञानहुँ क्षेत्र सूक्ष्म पनकनी अवगाहना ( शरीर प्रमाण जेटलुं छे अने उत्कृष्टथी असंख्य लोक प्रमाण छे. ॥१॥ लोचननी माफक साथे रहेवू ते ' अनुगामिक' नामना अवधिज्ञाननु तेज छे. एक जीवने अपेक्षी उत्कृष्ट अवधिज्ञाननी स्थिति छासठ सागरोपमथी वधारे छे. ॥२॥ (पहेलो भेद )। नही विकार पामेलो (मिथ्यात्वकृत मालिन्य रहित) एवो अवधिज्ञाननो गुण जे जीवोने उत्पन्न थयो छे ते जीवोने एक श्वासमा सो वखत मारी वन्दना
१ कालनी अपेक्षाए अथवा क्षेत्रनी अपेक्षाए, द्रव्य अथवा पर्यायनी अपेक्षाए अनन्ता भेदो पण छे.
२ उपलक्षण सो पद छे तेथी हजार लक्ष कोटी असंख्य अने अनंतीवार वन्दना थाओ.