Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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( २२४ )
दुष्पसह सूरीश्वर सुधी वर्त्तमान श्रुतज्ञाननो आचार प्रवर्त्तशे तेथी सान्त श्रुत जाणवुं. अथवा एक जीवने उद्देशीने पण श्रुतनुं सादि सान्नपणं होय छे तेथी सान्त जाणवुं ।। १२ ।। ( आठमो भेद )|| द्रव्यनयथी शाश्वत भावे वर्त्तनारुं श्रुत अनादि जाणवुं. ते ( शाश्वत भावे वर्त्तनारुं ) उत्तम आगमरूप रत्न महाविदेह क्षेत्रमां सदा काल वर्त्ते छे ॥ १३ ॥ ( नवमो भेद ) || अनेक जीवने अपेक्षी श्रुत अनादि अनन्त छे. ते अनादि अनंत श्रुत जाणं. द्रव्यादि' चार प्रकारे सादि सान्त अनादि अनन्त संबंधी वृत्तान्त समजो || १४ || ( दशमो भेद) || जे सूत्रमां सरखा पाठ ( आलावा) छे ते सिद्धान्त गर्मिक श्रुत जाणवुं अनेकान्त गुणे शोभित एवा पाठो घणं करीने दृष्टिवाद नामना बारमा अंगमां होय छे || १५ || (अगोयारमो भेद) || सरखा पाठ ( आलावा जेमां न होय ते अगमिक श्रुत जाणं. तेवा कालिक श्रुतवन्त महात्माओनी हे सज्जन पुरुषो !
१ द्रव्यथी एक जीवनी अपेक्षाए सम्यक्त्वनी प्राप्ति थवाथी सादिश्रुत जाणवं, अने मिथ्यात्व भवान्तर, केवलज्ञान, हानि, प्रमाद विगेरे कारणोथी ज्यारे ते नाश पामे त्वारे सान्तथुन जाणं. तथा अनेक जीवनी अपेक्षाए अनादि अनन्त जाणं ९. क्षेत्रथी भरत ऐ रवतनी अपेक्षाए सादिसान्त, अने विदेहनी अपेक्षाए अनादि अनन्त जाणं २. कालथी उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालनी अपेक्षाए सादिसान्त अने नो उत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी कालनी अपेक्षाए अनादि अनन्त जाणवं. ३. भावथी भवसिद्धिकपणानी अपेक्षाए सादिसान्त अने अभव्यपणाने आश्री अनादि अनन्त जाणवुं. ४.

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