Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 233
________________ (२२३ ) अनक्षर श्रुतने प्रकाश करनारो सत्य अर्थ जाणवो. ए बीजं अनक्षर श्रुत ॥४॥ (बीजो भेद)।। जे दीर्घकालिकी नामनी संज्ञा छे तेणे करीने ( सहित ) संज्ञि जीवो जाणवा ते संज्ञि जीवो मन इन्द्रियथी उत्पन्न थयेला संज्ञिश्रुतना स्थानक जाणवां ॥ ५॥ ( त्रीजो भेद ) ॥ जे जीवोने मनोरहित इन्द्रियो मात्रथी तेने आवरण करनारा कर्मना क्षयोपशमवडे जे ज्ञान थाय ते असंज्ञिश्रुत जाणवू. ।। ६ ।। ( चोथो भेद ) ॥ जे सिद्धान्त सम्यक्त्व विनानो होय ते विपरीत सिद्धान्त जाणवो ने जे सिद्धान्तमा सम्यक्त्व होय ते प्रत्यक्ष (सत्य) सिद्धान्त जाणवो. ॥७॥ सुदर त्रिभंगीथी भरपूर घणा नैगमादि नयो जेमां छे. अने जे वचनथी शुद्ध शुद्धतर अतिशय तेजवालुं छे ते समाकतश्रुत जाणवू ॥ ८॥ ( पांचमो भेद )|| बालबुद्धि मनुष्यो अनेक प्रयत्नथी भंगजालो रचे तेमां सम्यग्दर्शनना दृष्टान्तनो ( देखावनो ) भास पण नथा. ॥ ९॥ सद्असदना विवेचन विना एकान्त पक्ष अंगीकार करे अने जे ( ज्ञानवालाओ ) ज्ञानतुं फल पामे नहि ते मिथ्याश्रुतर्नु स्वरूप जाणवू ॥१०॥ (छटो भेद )॥'पांच भरत तथा पांच ऐरचत ए दश क्षेत्रोमां आदिसहित (सादि) श्रुत जाणवू. (जे जे तीर्थकरतुं तीर्थ प्रवर्ततुं होय ) ते ते प्रभुनो आधार (त्रिपदी ) पामीने तेमना गणधरोए रचेलं ते श्रुत जाणवू ॥ ११ ॥( सातमो भेद)। १ त्रिभंगीनुं स्वरूप गीतार्थ गुरु महाराज पासेयी जाणवू. २ एक जंबुद्वीपनो, बे धातकी खंडना, अने बे पुष्कराधना,

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