Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 235
________________ ( २२५ ) त्रिकरण योगथी अथवा त्रिकरण योगना हर्षोल्लासथी पूजा करीए. ||१६|| ( बारमो भेद ) |! अठार हजार पदे करीने युक्त आचाराङ्ग सूत्र वखाणीए. तेथी आगलना अगीयार अंगो बमणा बमणा पदोवाळा जाणवा. ते सर्व अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान छे. ॥। १७ ।। ( तेरमो भेद ) || जे बार उपाङ्गो छे ते अङ्गबाहिर श्रुत कहीए. तेना अनङ्गप्रविष्ट श्रुतरूपे वखाण करीए. (चौदमो भेद) ।। आ सव भेदो श्रुतरूपी लक्ष्मी देवीना मन्दिरतुल्य छे. ॥ १८ ॥ ॥ श्री अवधिज्ञानना चैत्यवन्दननो अर्थ ॥ अवधिज्ञान श्रीजुं कहेलं छे के जे अवधिज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम थवाथी इन्द्रियोनी अपेक्षा विना आत्मप्रत्यक्षरूपे प्रकट थाय छे ॥ १ ॥ जे जीवो देव तथा नरकभवने प्राप्त करे छे तेओने तो अवधिज्ञान अवश्य थाय छे, तेमां श्रद्धावंत समकिती जीव अवधि ज्ञान पायेछे अने मिथ्यात्वथी तो विभंगज थाय छे. एटले मिथ्यात्वी विभंग ज्ञान पामे छे. || २ || मनुष्य अने तिर्यचना भवमां गुण (अध्यवसायनी निर्मलतारूप ) थी उत्तम परिणामना संयोगे जीव अवधिज्ञान पामे छे. ( गुणथी प्राप्त थयेला ) अवधिज्ञाननो उपयोग 'एक मुनिने १ एक मुनिने कायोत्सर्ग ध्यानमा अध्यवसायनी विशुद्धिथी तदावरणीय कर्मनो क्षयोपशम थवाने ळीधे अवधिज्ञान उत्पन्न थयुं, तेना प्रभावथी तेणे सौधर्मेन्द्रनी समाने साक्षात् जोई. त्यां रीसायेली इन्द्राणीने मनावता इन्द्रने जोइने तेमने हांसी आववाथी तदावरणीय कर्मनो उदय थतां अवधिज्ञान जतुं रहूं.

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