Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 215
________________ (२०९) रवडे मनिज्ञाननी व्याख्यानो प्रकाश छे, व्यवहारनये ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम करवाथी अज्ञानी जीवने ज्ञाननो उल्लास थाय छे ॥२॥ निश्चयनय कहे छे के ज्ञानी होय तेज ज्ञान पामे छे. भगवन्तोने तो बन्ने नयो सत्य छे. आ ज्ञान उपयोगथी सर्व प्राणीओने हमेशा अन्तर्मुहूर्त सुधी रहे छे. (सतत उपयोग अंतर्मुहर्तन रहे छे.)।॥ ३ ॥ उभयाभाव. बाकी त्रणमा पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना ६. लेश्याद्वारे शुद्ध त्रणमां पंचेन्द्रियनी माफक, अशुद्ध त्रणमा पूर्वप्रतिपन्न होय, बीजा नहीं ७. सम्यक्त्व मार्गणाए व्यवहारनये पूर्वप्रतिपन्न होय पण प्रतिपद्यमान न होय, निश्चयनये उभय पण होय ८. ज्ञानद्वारे व्यवहारनये चार ज्ञानवालाओ पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान न होय. केवली उभय न होय. त्रण अज्ञानीओ प्रतिपद्यमान विवक्षितकाले होय पण पूर्व प्रतिपन न होय. निश्चयनये मति श्रुत अवधिज्ञानवाला प्रतिपन्न निश्चये होय, प्रतिपद्यमान पण विवक्षितकाळे होय. मनःपर्यायज्ञानी पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान नहीं. केवली तथा त्रण अज्ञानी उभय पण न होय ९. दर्शनद्वारे चक्षु अचक्षु दर्शन कब्धिवाला पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना, अवधिदर्शनी प्रतिपन्न होय,प्रतिपद्यमान नही. केवलदर्शनी उभय पणन होय.१०.संयतद्वारे पूर्व प्रतिपन होय, प्रतिपद्यमान नही ११.उपयोगद्वारे साकारोपयोगी पूर्वप्रतिपन्न होय,प्रतिपद्यमान भजना. अनाकारोपयोगी प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान न होय १२. आहारकद्वारे आहारक पूर्व प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान भजना. अनाहारक पूर्वप्रतिपन्न होय, प्र.

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