Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 228
________________ ( २१८) छे. पण भावथी ( पदार्थना ज्ञानथी ) 'छस्थान पतित होय छे ते मतिविशेषो श्रुतनाज प्रकारो छ । ४॥ तेन माटे अनन्तमे भागे वाणीमां गुंथायेल छ. समाकितसहित श्रुतज्ञानना कहेला सर्व पदार्थों सत्य जाणवा. ॥ ५॥ द्रव्यगुणपर्याये करी जे एक प्रदेशने जाणे छे ते सर्व प्रदेशने जाणे छे एवो नन्दीसूत्रनो उपदेश छे. ॥ ६ ॥ चोवीश जिनेश्वरना उपाधिथी विमुक्त थयेला चौद पूर्वधर साधुओ२३३९९८ छे. ।। ७ ।। एकान्त वस्तु कहेनारा परतीथिकोना जे सर्वशास्त्रसमूह ते समकितवन्त प्राणिर ग्रहण कर्ये छते सत्य अर्थवाला थाय छे, ॥ ८॥ जिनेश्वर महाराज तथा श्रुतकेवलिभगवन्तो ज्ञानाचारनुं च. रित्र कहे छे-तेनुं वर्णन करे छे तेथी श्रुतपंचमानुं आराधन करवा १ अनन्त भागाधिक १ असंख्येय भ.गाधिक २ संख्येयभा. गाधिक ३ संख्येयगुणाधिक ४ असंख्यगुणाधिक ५ अनन्तगुणाधिक ६. अथवा हानिना छ स्थान लेचा. २ ऋषभ० ४७५०, अनित० ३७२०, संभव० २१५०, अभिनन्दन० १५००, सुमति० २४००, पद्मपभ० २३००, सुपार्श्व. २०३०, चन्द्रमभ० २०००, सुविधि० १५००, शीतल० १४००,. श्रेयांस० १३००, वासुपूज्य० १२००, विमल० ११००, अननन. १०००, धर्म० ९००, शान्ति० ८००, कुन्थु० ६७०, अर० ६१०, मल्लि० ६६८, मुनिसुव्रत० ५००, नमि० ४५०, नेपि० ४००,. पार्श्व० ३५०, वर्धमान० ३००, कुल. १३९९८ चौदपूर्वी मुनि होय छे.

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