Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 229
________________ (२१९) विजयलक्ष्मीसूरि महाराजनुं चित्त थयुं छे. ॥ ९ ॥ . ॥श्रुतज्ञानना स्तवननो अर्थ ॥ श्रीतीर्थकर महाराजाए श्रुतज्ञान चौद प्रकारे वर्णव्युं छे, ते श्रुत ज्ञानरूपी महाराजानी' उपधान वहन करवा विगरे आचारोवडे सेवना करीए, श्रुतज्ञानने विषे मारुं दिल राची रो छे. सुखकर्ता परमात्माना आगममां दिल तथा चित्त राच्युं छे ॥१॥ एक विगेरे अक्षरोना संयोग करवाथी अकार संयोगी अनन्ता छे तेमन स्वपर पर्यायोए करीने एक अक्षर गुणपर्याय स्वरूपे अनन्तो छ ( जो के अक्षरो संख्याता छे, तो पण अक्षरोना वाच्य अभिधेयो तथा तेना धर्मो अनन्ता होवाथी अनन्ता संयोगो सिद्ध थाय छे)॥ २ ॥ अक्षरनो ( ज्ञाननो ) अनन्तमो भाग हमेशां उघाडो रहे छे, ते भाग तो अवरातोन नथी. सूक्ष्म जीवनुं ए ज्ञान छे ॥ ३॥ शुश्रूषा, (सांभलवानी इच्छा,) श्रवण करवू, फरी पुछवू, मनमा अवधारण करवू, ग्रहण कर, विचार, निश्चय करवो, धारण करी राख. बुद्धिना ए आठ गुण गणाय छे. ॥ ४॥ चोवीश तीर्थ करोना १२६२०० सर्व सभामा वादिआ छे. ( आ वादीओने कोइ पण वादमां जीती शके नहि ) ए प्रवचननो अपार महिमा छे. ।।५।। १ काल १ विनय २ बहुमान ३ उपधान ४ अनिन्हव ५ व्यंजन ६ अर्थ ७ तदुभय ८ . २ ऋषभना १२७५०, अजितना १२४००, संभवना १२००० अभिनन्दन ११०००, सुमति १०४५०, पद्मभु ९६००, सुपार्य

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