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( २०७) जीवो एक बे होय अथवा न पण होय. अने उत्कृष्टा क्षेत्र पत्योपमना असंख्यातमा भागमा जेटला आकाशप्रदेशो होय तेटली संख्या ए जाणवा ॥ ५ ॥ मतिज्ञान पामेला जीवो असंख्याता छे, अने मतिज्ञानथी पडवाइ थयेला ( पडेला ) अनन्ता छ, माटे हे भव्यजीवो! ज्ञाननी सर्वप्रकारनी आशातनानो त्याग करो के जेथी विजयलभी मेलवो. ॥ ६ ॥
थवा त्यांची आवतो सातीया पांच भागमा रहे छे ॥ ३॥ स्पर्शनाद्वारे पूर्वोक्त क्षेत्रथी स्पर्शना वधारे होय ॥ ४ ॥ कालद्वारे उपयोग आश्रयी एक अथवा अनेक जीवोने अन्तर्मुहर्त काल, लब्धि आश्रयी. जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त,उत्कृष्टथी छासठ सागरोपमथी वधारे. बे वार विजयादिमां अथवा त्रण वार अच्युत देवलोके जवाथी तेमां मनुष्य भवोनो काल वधारे जाणवो. नाना जीवाने अपेक्षी सर्व काल ॥ ५ ॥ अन्तरद्वारे एक जीवने आश्रयी जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त्तनु, उत्कृष्ट अपार्थ पुद्गल परावर्त, अनेक जीवोने आश्रयी अन्तर न होय ॥६॥ भागद्वारे मतिज्ञानीओ शेष ज्ञानी तथा अज्ञानीओना अनन्तमे भागे वत्तें छ. ॥ ७॥ भावद्वारे मतिज्ञानी क्षायोपशमिकभावे वर्ते छः ॥८॥ अल्पबहुत्वद्वारे सर्वथी थोडा मतिज्ञान पामता जीको, पामेळा जीवो जघन्यपदे पण असंख्येय गुणा, तेथी उत्कृष्टपदे विशेषाधिक ॥ ९॥..