Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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(२१५) विशेषनी मुख्यतावाला धर्मास्तिकायादिक सर्व द्रव्योने केटलाक पर्यायो सहित जाणे ॥२८॥(द्रव्यथी १)। क्षेत्रथी सामान्यप्रकारे तत्वप्रतीतिना अनुकूलपणाए करी सर्व लोकालोकना स्वरूपने जाणे ॥२९॥ (क्षेत्रथी २)। कालथी सामान्ये करी अतीत अनागनकाल अने. वर्तनाकालनो समयविशेष ते सर्वने जेमां लवलेश असत्यपणुं नथी तेवी रीते जाणे ॥ ३० ॥(कालथी ३)॥ भावथी सामान्ये करी सर्व पर्यायोनो अनन्तमो भाग जाणे अथवा सामान्यथी औदयिकादिक 'पांच भावोने जाणे ॥ ३१ ॥ ( भावथी ४)॥
(चार प्रकारनी बुद्धिनुं स्वरूप.)
(श्रुतनिश्रित मतिज्ञानना अवग्रहादि तथा बहु अबह्वादिभेदो कह्या) हवे अभुतनिश्रित मतिज्ञानना चार भेदो छे ते कहे छे. तेमां पहेलो अवसरोचित रोहानी माफक कोइथी कली न शकाय एवो 'औत्पा. तिकी'नामनो भेद जाणवो.॥३२।। गुरुमहाराजानो सर्व गुणोमा अग्रेसर एवो विनय करवाथी जे मतिज्ञाननो विस्तार पामीए ते 'वैनयिकी' बुद्धि नामनो बीजो भेद जाणवो. आ बुद्धि सर्व गुणोमां शिरोमणि छ ॥३३॥ वारंवार कार्यनो अभ्यास करवाथी जे मतिज्ञाननो भलो विचार उद्भवे तेने नंदीसूत्रादिसूत्रोमा 'कार्मिकी' बुद्धि कही छे. ( आ त्रीजो
१ औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक, . २ रोहकनुं दृष्टान्त प्रसिद्ध छे.

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