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लोचनपरे साथे रहे, ते अनुगामिक धाम ॥. ..... छासठ सागर अधिक छ, एक जीव आशरी ठाम ॥२॥ उपन्यो अवधिज्ञाननो, गुण जेहने अविकार ॥ वंदना तेहने माहरी, श्वासमाहे सो वार. ३. ॥ १ ॥ ख० ॥
त्रीजो दुहो सर्व खमासमणे कहेवो. ।। जेह क्षेत्रे ओहि उपन्यु, तिहां रह्यो वस्तु देखंत ॥ थीर दीपकनी उपमा, अननुगामी लहंत. ४. ॥उप०॥२॥ख०॥ अंगुल असंख्येय भागथी, वधतुं लोक असंख्य ॥ लोकावधि परमावधि, वर्धमान गुण कंख्य. ५. |उप०॥शाख०॥ योग्य सामग्री अभावथी, हीयमान परिणाम ॥ अध अध पूरव योगथी, एहवो मननो काम. ६.॥उप०॥४॥ख०॥ संख्य असंख्य जोजन सुधी, उत्कृष्टो लोकांत ॥ देखी प्रतिपाती होये, पुद्गल द्रव्य एकांत. ७. उप०॥५॥ख०॥ एक प्रदेश अलोकनो, पेखे जे अवधि नाण॥ अपडिवाइ अनुक्रमे, आपे केवल नाण. ८.॥ ॥उप०॥६॥ख०॥
॥ इति अवधि ज्ञान संपूर्ण ॥