Book Title: Gyanpanchami
Author(s): Manek Bahen
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ (२००) चोथी उजागर दशा, तेहनो अनुभव जोवे ॥ क्षपक श्रेणि आरोहियाए, अपूर्व शक्ति संयोगे । लही गुणठाणुं बारमुं, तुर्य कषाय वियोगे. ॥१॥ नाण सण आवरण मोह, अंतराय घन घाति । कर्म दुष्ट उच्छेदीने, थया परमातम जाति ॥ दोय धर्म सवि वस्तुना, समयांतर उपयोग । प्रथम विशेषपणे ग्रहे, बीजे सामान्य संयोग । सादि अनंत भांगे करी, दर्शन ज्ञान अनंत । गुणठाणुं लही तेरमुं, भाव जिणंद जयवंत. ॥२॥ मूल पयडीमां एक बंध, सत्ता उदये चार । उत्तर पयडीनो एक बंध, उदय रहे बायाल ।। सचा पंचाशीतणी, कर्म जेहवा रज्जु छार । मन वच काया योग जास, अविचळ अविकार ॥ सयोगी केवलीतणी ए, पामी दशाए विचरे । अक्षय केवलज्ञानना, विजय लक्ष्मी गुण उचरे ॥३॥ ॥ इति श्री केवल ज्ञान चैत्यवंदन ॥ पछी नमुथ्थुणं० ॥ जावंति० ॥ नमोऽर्हत् ॥ कही स्तवन कहेवू ते आ प्रमाणे ॥ अथ स्तवन ॥ ॥ कपूर होये अति ऊजलो रे ।। ए देशी॥ श्रीजिनवरने प्रगट थयुरे, क्षायिक भावे ज्ञान ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254