________________
( १६८)
श्री पंचमीनी स्तुति श्रावण शुदि दिन पंचमी ए, जनम्या नेमिजिणंद तो ॥ श्याम वरण तनु शोभतुं ए, मुख शारदको चंद तो ॥ सहस वरस प्रभु आउखु ए, ब्रह्मचारी भगवंत तो।। अष्ट करम हेले हणीए, पहोता मुक्ति महंत तो अष्टापद पर आदि जिन ए, पहोता मुक्ति मोझार तो ॥ वासुपूज्य चंपापुरी ए, नेम मुक्ति गिरनार तो ॥ पावापुरी नगरीमां वळी ए, श्री वीरतणुं निर्वाण तो।। समेतशिखर वीश सिद्ध हुआ ए, शिर वहुं तेहनी आण तो ॥ २ ॥ नेमिनाथ ज्ञानी हुआ ए, भाखे सार वचन तो ॥ जीवदया गुण वेलडीए, कीजे तास जतन तो। मृषा न बोलो मानवी ए, चोरी चित्त निवार तो॥ अनंत तीर्थकर एम कहे ए, परहरिए परनार तो ॥ ॥ ३ ॥ गोमेद नामे जक्ष भलो ए, देवी श्री अंबिका नाम तो ॥ शासन सानिध्य जे करे ए, करे वळी धमेनां काम तो॥ तपगच्छ नायक गुणनिलो ए, श्री विजयसेन सूरिराय तो ॥ रिषभदास पाय सेवा ए, रूफल करो अवतार तो॥ ॥ ४ ॥
इति श्री पंचमीनी स्तुति संपूर्ण. .
श्री ज्ञानपंचमीनुं लधु स्तवन. पंचमी तप तमे करोरे प्राणी ! जेम पापो निर्मण नाणरे; पहेलुं ज्ञान ने पछी किरिया, नहीं कोई ज्ञान समानरे ॥ ५० ॥१॥