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(१२२ ) दरवा शास्त्रकार आग्रहपूर्वक कहे छे. जेम भंड विष्टामां मग्न रहे छे तेम मूढ माणस अज्ञानमांज मग्न रहे छे, पण ज्ञानी पुरुष तो जेम हंस मानसजलमा मग्न रहे छे तेम निर्मल ज्ञानगुणमांज मग्न रहे छे. ज्ञानी पुरुष कदापि ज्ञानमां अरति धारतो नथी, अथवा ज्ञान ज तेनो खरो खोराक होवाथी ते तेने अत्यंत आदरथी सेवे छे. _२ जेनाथी राग द्वेषनो अत्यन्त क्षय थवा पूर्वक मोक्षपदनी प्राप्ति थइ शके एवा पण एक पदनो वारंवार अभ्यास करी तेमा तन्मय थर्बु तेज ज्ञान श्रेष्ठ छे. 'मारुष मातुष' जेवा एक पदथी पण कल्याण साधी शकाय छे. तेवाज वधारे पद होय तेनुं तो कहेबुंज शुं ? बाकी भारभूत एवा शुष्क ज्ञान मात्रथी कंइ कल्याण नथी.
३ जेथी स्वभाव निर्मळ थाय एटले आत्मपरिणति सुधरती जाय तेज ज्ञान कहेवाय छे, बाकीचें ज्ञान तो केवल बोजारूपज छे. आ संबंधमां योग दृष्ठि समुच्चयमां हरिभद्र सूरीजी बुद्धिना अन्धकार रूप नीचे प्रमाणे ज कहे छे.
४ पूर्वपक्ष उत्तर पक्ष रुप वाद प्रतिवाद करतां तथा अनिश्चित पदार्थोने वदतां थकां, जेम घांचीनो बळद गमे तेटलुं चाले तोपण तेनो अंत आवतो नी, तेम तत्त्वनो पार पामी शकातोज नथी. साध्य दृष्टिथी धर्मचर्चा करतां के नम्रपणे तत्त्व कथन के श्रवण करतां केवल हित प्राप्तिज थाय छे. माटे शुष्क वादविवाद तजीने केवळ तत्व खोजना करवी.
५ आत्मद्रव्यना गुण पर्यायनी पर्यालोचना करवीज श्रेष्ट छ, बीजी नकामी बाबतमा वखत गुमाववो युक्त नथी. आ प्रमाणे आत्म संतोष उत्पन्न करनार मुष्टिज्ञाननी स्थिति मुनिनी गणाय छे. मुष्ठि