Book Title: Gyananand Shravakachar Author(s): Raimalla Bramhachari Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust View full book textPage 9
________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार टीकाओं के बनाने में तीन वर्ष का समय लगा और उनकी प्रेरणा से ही टीका लिखी गई तथा वे तीन वर्ष तक वहाँ रहे) 3-4 वर्ष पूर्व अर्थात् वि.सं. 1808-9 में वे पं. टोडरमलजी से मिलने के लिए अत्यन्त उत्सुक व प्रयत्नशील थे।' इन्द्रध्वज-विधान-महोत्सव-पत्रिका से यह स्पष्ट है कि माह शुक्ल 10 वि.सं. 1821 में इन्द्रध्वज पूजा की स्थापना हुई थी। उसके लगभग तीन वर्ष पूर्व निश्चित रूप से वि.सं. 1818 में टीकाओं की रचना हो चुकी थी। टीकाओं की रचना में लगभग तीन वर्ष का समय लगा था। अतः यदि तीन वर्ष पूर्व पण्डित प्रवर टोडरमलजी ने ब्र. पं. रायमल्लजी की प्रेरणा से टीका-रचना का प्रारम्भ किया हो, तो वि.सं. 1815 के लगभग समय ठहरता है / इससे यह भी निश्चित है कि ब्र. पं. रायमल्लजी यदि दो-तीन वर्ष उदयपुर-जयपुर-आगरा-जयपुर घूम-फिर कर बत्तीस वर्ष की अवस्था में शेखावाटी के सिंघाणा नगर में पं. टोडरमलजी से मिले हों, तो वह वि.सं. 1812 का वर्ष था और इस प्रकार उनका जन्म वि.सं. 1780 सम्भावित है। ___ पण्डित दौलतरामजी और पं. टोडरमलजी ब्र. रायमल्लजी से अवस्था में बड़े थे। पण्डित टोडरमलजी को उन्होंने कई स्थानों पर भाईजी, टोडरमलजी लिखा है। उनकी ज्ञान-गरिमा और रचनात्मक शक्ति से वे अत्यन्त प्रभावित थे। उनके ही शब्दों में “सारां ही विषै भाईजी टोडरमलजी के ज्ञान का क्षयोपशम अलौकिक है।' पण्डित टोडरमलजी का जन्म वि.सं. 177677 में कहा गया है। पं. दौलतरामजी कासलीवाल का समय निर्णीत है। उनका जन्म वि.सं. 1745 में बसवा ग्राम में हुआ था।' संक्षेप में, ब्र. पण्डित रायमल्लजी के जन्म की निम्नतम सीमा वि.सं. 1775 और अधिकतर सीमा वि.सं. 1782 कही जा सकती है। क्योंकि यह सुनिश्चित है कि पं. दौलतरामजी से वे अवस्था में छोटे थे। और तीस वर्ष की अवस्था के पश्चात् ही वे पंडित 1. हितैषी, 1941 ई. वर्ष 1-2, अंक 12-13, पृ. 92-93, जयपुर 2. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, पृ. 53 3. नेमीचन्द शास्त्री : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा खण्ड-4, पृ. 281Page Navigation
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