Book Title: Gyananand Shravakachar Author(s): Raimalla Bramhachari Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust View full book textPage 7
________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार इस उद्धरण से स्पष्ट है कि मित्र की साक्ष्य के अनुसार रायमल्ल विवेकी पुरुष थे। दया, परोपकार, निरभिमानता आदि अनेक गुणों से विभूषित थे। उन्हें एक दार्शनिक का मस्तिष्क, श्रद्धालु का हृदय, साधुता से व्याप्त सम्यक्त्व की सैनिक दृढ़ता और उदारता पूर्ण दयालु के कर-कमल सहज ही प्राप्त थे। वे गृहस्थ होकर भी गृहस्थपने से विरक्त थे, एकदेश व्रतों को धारण करने वाले उदासीन श्रावक थे। के जीवन भर अविवाहित रहे / तेईस वर्ष की अवस्था में उन्हें तत्वज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। राजस्थान में शताब्दियों से शाहपुरा धर्म का एक केन्द्र रहा है। लगभग तीन शताब्दियों से यह जैनधर्म, रामसनेही तथा अन्य धर्मावलम्बियों का मुख्य धार्मिक स्थान है / भीलवाड़ा से लगभग बारह कोस की दूरी पर स्थित शाहपुरा सरावगियों का प्रमुख गढ़ रहा है, जहाँ धार्मिक प्रवृत्तियाँ सदा गतिशील रही हैं / स्वाध्याय की रुचि सदा से इस नगर में बनी रही है / जैन शास्त्रों का जितना बड़ा शास्त्र-भण्डार यहाँ है, उतना बड़ा सौ-दो सौ मील के क्षेत्र में भी नहीं है। रायमल्लजी का धार्मिक जीवन इसी नगर से प्रवृत्तमान हुआ। वे यहाँ सात वर्ष रहे / यहीं पर उनको सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई थी। उनके ही शब्दों में - "थोरे ही दिनों में स्व-पर का भेद-विज्ञान भया। जैसे सूता आदमी जागि उठै है, तैसे हम अनादि काल के मोह निद्रा करि सोय रहे थे, सो जिनवाणी के प्रसाद तै वा नीलापति आदि साधर्मी के निमित्त तै सम्यग्ज्ञान दिवस विर्षे जागि उठे। साक्षात् ज्ञानानन्द स्वरूप, सिद्ध सादृश्य आपणा जाण्या और सब चरित्र पुद्गल द्रव्य का जाण्या / रागादिक भावाँ की निज स्वरूप सूं भिन्नता वा अभिन्नता नीकी जाणी। सो हम विशेष तत्वज्ञान का जानपणा सहित आत्मा हुवा प्रवर्ते। विराग परिणामाँ के बल करि तीन प्रकार के सौगंद-सर्व हरितकाय, रात्रि का पाणी व विवाह करने का आयु पर्यंत त्याग किया / ऐसे होते संते सात वर्ष पर्यंत उहाँ ही रहे।"1 स्थितिकाल :- जयपुर निवासी पं. रायमल्लजी उस युग के प्रसिद्ध विद्वान् पं. टोडरमलजी, पं. दौलतरामजी कासलीवाल और कवि द्यानतराय 1. इन्द्रध्वजविधान-महोत्सव-पत्रिका, पाना-2Page Navigation
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