Book Title: Gyananand Shravakachar Author(s): Raimalla Bramhachari Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust View full book textPage 6
________________ प्रस्तावना डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पूर्व अध्यक्ष श्री अ.भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् हिन्दी साहित्य में “रायमल्ल' नाम के तीन साहित्यकारों का उल्लेख मिलता है। प्रथम ब्रह्म रायमल्ल हुए जो सत्रहवीं शताब्दी के विद्वान थे। वे हुंवड वंशीय विद्वान थे। उनकी रची हुई अधिकतर रचनाएँ रासो संज्ञक तथा पद्यबद्ध कथाएँ हैं / दूसरे विद्वान कविवर राजमल्लजी पाण्डे' नाम से सत्रहवीं शताब्दी में प्रख्यात हो चुके थे। उनकी रचनाएँ अधिकतर टीका ग्रन्थ हैं जो इस प्रकार हैं - समयसार कलश बालबोध टीका, तत्वार्थसूत्र टीका, जम्बूस्वामीचरित एवं अध्यात्मकमल मार्तण्ड, इत्यादि / तीसरे साहित्यकार प्रस्तुत श्रावकाचार के लेखक ब्रह्मचारी रायमल्लजी हैं। इन्द्रध्वज विधानमहोत्सव पत्रिका के साथ ही प्रकाशित अपनी जीवन-पत्रिका' में उन्होंने अपना नाम "रायमल्ल' दिया है। पण्डित प्रवर टोडरमलजी, पं. दौलतरामजी कासलीवाल और पं. जयचन्दजी छाबड़ा, आदि विद्वानों ने अत्यन्त सम्मान के साथ उनके “रायमल्ल' नाम का उल्लेख अपनी रचनाओं की प्रशस्तियों में किया है। पण्डित दौलतरामजी कासलीवाल के उल्लेख से स्पष्ट है कि वे जयपुर निवासी थे। दौलतरामजी ने अपने आपको उनका मित्र लिखा है। उनके ही शब्दों में - रायमल्ल साधर्मी एक, जाके घट में स्व-पर-विवेक / / दयावन्त गुणवन्त सुजान, पर-उपकारी परम निधान / दौलतराम सु ताको मित्र, तासों भाष्यो वचन पवित्र / / 5 / / 1. “अथ आगै केताइक समाचार एकदेशी जघन्य संयम के धारक रायमल्ल ता करि कहिए हैं।" - इन्द्रध्वज-विधान-महोत्सव पत्रिका की प्रारम्भिक पंक्तिPage Navigation
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