Book Title: Gurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 167
________________ ॥ अर्हम्॥ ॥ श्रीगुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्विंशिकाकुलकविषयानुक्रमणिका॥ विषयाः पृष्ठाङ्काः | विषयाः पृष्ठाङ्काः विवृतिकारमङ्गलाचरणादि ......... १५६ पञ्चविधेन्द्रियविषयस्वरूपम् ... १७३-१७४ नमस्काराभिधेयादि ........... १५७-१५८ पञ्चविधप्रमादस्वरूपम् ........ १७४-१७५ ॥ प्रथमषट्त्रिंशिकाविषयोपक्रमः॥ पञ्चविधास्रवस्वरूपम् ................ १७५ | पञ्चविधनिद्रास्वरूपम् ................ १७५ चतुर्विधदेशनास्वरूपम् ....... १५९-१६० | पञ्चविधकुभावनास्वरूपम् ..... १७५-१७६ चतुर्विधकथास्वरूपम् ................ १६० षट्काययतनास्वरूपम् ................ १७६ चतुर्विधधर्मस्वरूपम् .......... १६०-१६२ ॥ चतुर्थषट्त्रिंशिकाविषयोपक्रमः॥ चतुर्विधभावनास्वरूपम् ....... १६२-१६३ चतुर्विधस्मारणास्वरूपम् ............ १६३ षड्वचनदोषस्वरूपम् ......... १७७-१७८ चतुर्विधार्तध्यानस्वरूपम् ...... १६३-१६४ .......... १७८-१७९ षड्लेश्यास्वरूपम् षड्विधावश्यकस्वरूपम्....... १७९-१८१ चतुर्विधरौद्रध्यानस्वरूपम् ............ १६४ षड्द्रव्यस्वरूपम् . ................. १८१ सप्रभेदचतुर्विधध्यानस्वरूपम् .. १६४-१६६ षड्दर्शनस्वरूपम् . ........... १८१-१८२ चतुर्विधशुक्लध्यानस्वरूपम् ... १६६-१६७ षड्भाषास्वरूपम् . ................. १८३ ॥ द्वितीयषट्त्रिंशिकाविषयोपक्रमः॥ | ॥ पञ्चमषट्त्रिंशिकाविषयोपक्रमः॥ पञ्चविधसम्यक्त्वस्वरूपम् ..... १६७-१६८ | सप्तविधभयस्वरूपम् ................. १८४ पञ्चविधचारित्रस्वरूपम् ........ १६८-१६९ सप्तविधपिण्डैषणास्वरूपम्............ १८४ पञ्चविधमहाव्रतस्वरूपम् ....... १६९-१७० सप्तविधपानैषणास्वरूपम् ............. १८४ पञ्चविधव्यवहारस्वरूपम् ............. १७० | सप्तविधसुखस्वरूपम् .......... १८४-१८५ पञ्चविधाचारदिग्दर्शनम् ............... | अष्टविधमदस्थानस्वरूपम् ..... १८५-१८६ पञ्चविधसमितिस्वरूपम् ....... १७०-१७१ ॥ षष्ठषट्त्रिंशिकाविषयोपक्रमः॥ पञ्चविधस्वाध्यायस्वरूपम् ............ १७१ अष्टविधज्ञानाचारस्वरूपम् ..... १८६-१८७ एकविधसंवेगस्वरूपम् ........ १७१-१७२ अष्टविधदर्शनाचारस्वरूपम् ........... १८७ ॥ तृतीयषट्त्रिंशिकाविषयोपक्रमः॥ अविचारित्राचारस्वरूपम..........१८॥ पञ्चविधेन्द्रियस्वरूपम् ......... १७२-१७३ | अष्टविधवादिगुणस्वरूपम् ..... १८७-१८८ ...१५२... श्रीगुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिकाकुलकविषयानुक्रमणिका १७०

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