Book Title: Gurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 200
________________ 'तं नत्थि सुहं चक्की-ण नेव इंदाण नमिरअमराणं। जं निजियमयणाणं, मुणीण संतोसनिरयाणं ॥२॥ तरलतरतुरअतुल्ला-णि जेहि करणाणि पंचवि जिणित्ता। सवसीकयाई ते च्चिय, जयंमि सुहिणो पुरिससीहा ॥३॥ सरयससिसरिससुअना-णवारिधाराहिं धोवियं जेहिं। सुपसन्नं निययमणं, विहियं ते सुक्खमणुपत्ता ॥४॥ सव्वेसिं जीवाणं, दयावरा जे हवंति नरवसहा। करकमलतले तेसिं, भमरिव्व सिरी समल्लियइ॥५॥ परदुक्खुप्पायगवय-णभणणविरयाण पुरिसरयणाणं। इहलोए परलोए, कल्लाणपरंपरा परमा॥६॥ सीलकवयं न भिन्नं, जेसिं तिक्खेहिँ कामबाणेहिं। कप्पूरतारकित्तीइ, तेहिं भरियं धरावलयं॥७॥ दुस्सीललोयसंस-ग्गचायबद्धायराण जीवाणं। गुणवल्लीउल्लासं, लहेइ सुविवेयफलजालं॥८॥ एयाइँ ताइँ सत्त य, सुहाइँ जाई जए पसिद्धाई। एएहिं जो य सुहिओ, सुच्चिय परमत्थओ सुहिओ॥९॥' इत्येवंविधैः सप्तभिरपि सुखैः संयुक्तः। तथा अष्टमदस्थानानि जाति १ कुल २ रूप ३ बल ४ श्रुत ५ तपो ६ लाभ ७ श्री ८ मदरूपाणि। यदाह - 'जाइ १ कुल २ रूव ३ बल ४ सुअ - ५ तव ६ लाभ ७ सिरीहिं ८ अट्ठमयमत्तो। एयाई चिय बंधइ, असुहाइँ बहुं च संसारे॥१॥' (उपदेशमाला ३३०) अपि च - जातिभेदान्नैकविधानुत्तमाधममध्यमान्। दृष्ट्वा को नाम कुर्वीत, जातु जातिमदं सुधीः ?॥१॥ अकुलीनानपि प्रेक्ष्य, प्रज्ञाश्रीशीलशालिनः। न कर्तव्यः कुलमदो, महाकुलभवैरपि॥२॥ अष्टमदस्थानानि ...१८५...

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