Book Title: Gurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 231
________________ अष्टादश पापस्थानानि प्राणातिपातादीनि। यदाह'पाणाइवाय १ मलियं २, चोरिक्कं ३ मेहुणं ४ दविणमुच्छं ५। कोहं ६ माणं ७ मायं ८, लोभं ९ पिजं १० तहा दोसं ११॥१॥ कलहं १२ अब्भक्खाणं १३, पेसुन्नं १४ रइअरइसमाउत्तं १५ परपरिवायं १६ मायामोसं १७ मिच्छत्तसल्लं १८ च॥२॥' (रत्नसञ्चयः ५२९, ५३०) अपि च'सुहुमे य बायरे वा, जो पाणे उवहिंसइ। रागद्दोसाभिभूयप्पा, लिप्पई पावकम्मुणा॥१॥ जो मुसं भासए किंचि, अप्पं वा जइ वा बहुं। रागद्दोसाभिभूयप्पा, लिप्पई पावकम्मुणा॥२॥ अदत्तं गिण्हई जो उ, अप्पं वा जइ वा बहुं। रागद्दोसाभिभूयप्पा, लिप्पई पावकम्मुणा॥३॥ मेहुणं सेवई जो उ, तिरिच्छं दिव्वमाणुसं। .. रागद्दोसाभिभूयप्पा, लिप्पई पावकम्मुणा॥४॥ परिग्गहं गिण्हई जो उ, अप्पं वा जइ वा बहुं। गेहीमुच्छाभिभूअप्पा, लिप्पई पावकम्मुणा॥५॥ कोहं जो अ उईरेइ, अप्पणो य परस्स य। तन्निमित्ताणुबंधेणं, लिप्पई पावकम्मुणा॥६॥ माणं जो उ उईरेइ, अप्पणो य परस्स य। तन्निमित्ताणुबंधेणं, लिप्पई पावकम्मणा ॥७॥ मायं जो उ उईरेइ, अप्पणो य परस्स य। तन्निमित्ताणुबंधेणं, लिप्पई पावकम्मुणा॥८॥ लोभं जो उ उईरेइ, अप्पणो य परस्स य। तन्निमित्ताणुबंधेणं, लिप्पई पावकम्मुणा॥९॥ रागं जो उ उईरेइ, अप्पणो य परस्स य। तन्निमित्ताणुबंधेणं, लिप्पई पावकम्मुणा॥१०॥ ...२१६... अष्टादश पापस्थानानि

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