Book Title: Gurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Author(s): Hemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
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वीसंभट्ठाणमिणं सब्भावजढे सढं हवइ एयं। कवडंति कयवयंति य, सढयावि य हुंति एगट्ठा ॥१८॥ गणिवायगजिट्टजत्ति हीलियं किं तुमे पणिवएणं। दरवंदियंमि वि कहं, करेइ पलिउंचियं एयं ॥१९॥ अंतरिओ तमसे वा, न वंदइ वंदई उ दीसंतो। एवं दिट्ठमदिटुं, सिंगं पुण कुंभपासेहिं॥२०॥ करमिव मन्नइ दिंतो, वंदणयं आरिहंतियकरोत्ति। लोइयकराओ मुक्का, न मुच्चिमो वंदणकरस्स॥२१॥ आलिद्धमणालिद्धं, गुरुपयसीसे य होइ चउभंगो। वयणक्खरेहिँ ऊणं, जहण्णकाले विसेसेइ॥२२॥ दाऊण वंदणं मत्थएण वंदामि चूलिया एसा। मूउ व्व सद्दरहिओ, जं वंदइ मूयगं तं तु॥२३॥ ढड्डरसरेण जो पुण, सुत्तं घोसेइ ढड्डरं तमिह। चुडुलिं व गिण्हिऊणं, रयहरणं होइ चुडुलीयं ॥२४॥
___ (प्रवचनसारोद्धारः १६४-१७३) 'बत्तीसदोसपरिसुद्धं, किइकम्मं जो पउंजइ गुरूणं। सो पावइ निव्वाणं, अचिरेण विमाणवासं वा॥२५॥ किइकम्मंपि कुणंतो, न होइ किइकम्मनिजराभागी। पणवीसामन्नयरं, साहू ठाणं विराहतो॥२६॥' (गुरुवन्दनभाष्यम् २६,१९) विकथा चतुर्विधा स्त्रीभक्तदेशराजकथारूपा सुप्रतीतैव। यत्प्रतिक्रमणसूत्रम् – पडिक्कमामि चाहिं विकहाहि-इत्थीकहाए भत्तकहाए देसकहाए रायकहाए। (श्रमणप्रतिक्रमणसूत्रम्) अन्यत्रापि पठ्यते –
‘सा तन्वी सुभगा मनोहररुचिः कान्तेक्षणा भोगिनी,
तस्या हारि नितम्बबिम्बमथवा विप्रेक्षितं सुभ्रवः। १. ब-पुस्तके-“विसेसेहिँ" इत्यपि। २. ड-पुस्तके-“चुडुलियं तं तु” इत्यपि। ३. ब-पुस्तके“पउंजए" इत्यपि। ४. ब-पुस्तके-“बत्तीसामन्नयरं” इत्यपि॥ चतुर्विधा विकथा
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